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Showing posts from February, 2011

अशोक गहलोत रखते हैं फूँक-फूँक कर कदम, मगर कदम के निशां तक नहीं

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राजेंद्र बोड़ा राजस्थान पत्रिका ने आज (12 फरवरी, 2011) के अंक में अपने पूर्व संपादक विजय भण्डारी का एक लेख “फूँक-फूँक कर कदम” प्रकाशित किया है। भण्डारी कहते हैं कि राज्य में अब तक हुए कुल 11 मुख्य मंत्रियों (नौ कांग्रेस, दो भाजपा) में अशोक गहलोत “पहले ऐसे मुख्य मंत्री हैं, जो आम आदमी की बोली बोलने में गुरेज नहीं करते हैं”। इसके लिए वे गहलोत के उस सार्वजनिक वक्तव्य को आधार बनाते हैं जिसमें कहा गया है कि पुलिस के थानेदारों की जानकारी में है कि उनके क्षेत्र में कौन चोर है, मगर वे उन्हें पकड़ते नहीं। भण्डारी गहलोत के इस वक्तव्य से खुद “चकित” हैं। वे कहते हैं कि “थानेदारों को राज्य के पदासीन मुख्य मंत्री द्वारा इससे बड़ा काला प्रमाणपत्र क्या हो सकता है? मुख्य मंत्री ने उनका चेहरा काला पोत के रख दिया है, लेकिन उन्हें (थानेदारों को) शर्म नहीं आती है”। भण्डारी बाद में यहाँ तक लिख बैठे कि “अशोक गहलोत ने अपने द्वितीय कार्यकाल के 26 महीनों में प्रशासन के अनेक लोगों के मुँह काले पोत दिये मगर उनके कान में जूँ नहीं रेंगी”। ऐसे वक्तव्यों में वे अशोक गहलोत के बड़े सुकोमल रूप को देखते हैं। वे यह भी कहत

गीत-संगीत में ढल कर आम जन तक पंहुचे गांधी

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राजेंद्र बोड़ा महात्मा गांधी का संगीत से क्या वास्ता हो सकता है। सतही तौर पर देखने पर गांधीजी का जीवन बड़ा ही नीरस और उबाऊ लग सकता है। एक राजनेता और समाज सुधारक की महात्मा गांधी की छवि में आम तौर पर कला या संगीत के लिए कोई स्थान नहीं दिखता। संगीत और अन्य कलाओं के लिए उनके पास वक्त ही कहाँ था। देश की आजादी और विभिन्न समुदायों खास कर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच भाईचारे को मजबूत बनाने के लिए प्रयासों में ही उनका सारा जीवन बीत गया। खुद उनके जीवनकाल में लोगों को लगता था कि वे जिस प्रकार का जीवन व्यतीत करते हैं और जिस सादे जीवन की अपेक्षा वे लोगों से करते हैं उसमें संगीत जैसी कलाओं का कोई स्थान नहीं हो सकता। ख्यातनाम गायक दिलीप ने एक बार गांधीजी से संगीत की चर्चा छेड़ ही दी। दिलीप बंगाल के जाने माने नाट्यकार द्विजेंद्रलाल राय के बेटे थे और गायन के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति पा चुके थे। संगीत की बात छेडते हुए दिलीप ने कहा महात्मा जी मुझे लगता है हमारे स्कूलों और कालेजों में हमारे खूबसूरत संगीत की उपेक्षा होती है। जवाब में गांधी जी बोले “यह दुर्भाग्यजनक है। मैंने तो हमेशा ही यह कहा है”।

जयपुर लिट्रेचर फेस्टीवल : कंचन के सहारे साहित्यिक गुणों को परिभाषित करने का प्रयास

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राजेन्द्र बोड़ा राजधानी में होने वाला जयपुर लिटरेचर फेस्टीवल, अंतर्जाल (इंटरनेट) के एक खबरिया मुकाम ‘डेली बीस्ट’ के मुताबिक, विश्व के अव्वल नंबर के समागमों में शुमार हो गया है। उसने इसे “धरती पर साहित्य का महानतम प्रदर्शन” बताया। आयोजक खुश थे कि उनके प्रयासों की सफलता का डंका सभी मानने लगे हैं। लिटरेचर फेस्टिवल का इस बार यह छठा सालाना संगम था। इस समारोह की कल्पना को जयपुर में पहली बार साकार ब्रितानवी मूल की महिला फेथ सिंह ने जयपुर विरासत फ़ाउंडेशन के झंडे तले किया था। छह सालों के सफर में इस आयोजन की सफलता इसी से आँकी जा सकती है कि इस बार उसके पास प्रायोजकों की भीड़ थी। प्रमुख प्रायोजक डीएससी कंपनी थी जो राजमार्ग और रेल पथ के साथ पन बिजली उत्पादन के क्षेत्र में बड़ी निवेशक है। समारोह पर बड़ा निवेश करने की एवज में इस बार उसके नाम से – “डीएससी जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल” का आयोजन हुआ। हर बार की तरह इस बार भी जलसे में अभिजात्य लोगों की खूब रौनक रही। यह सवाल अलहदा है कि क्या यह अभिजात्य वर्ग सचमुच साहित्य पढ़ता है या उसे तस्वीर की तरह देख कर अलग रख देता है या उसे अपने ड्राइंग रूम में सजा देता