Posts

Showing posts from December, 2020

लता श्रुति संवाद: सिने संगीत के स्वर्णयुग में फिर लौटना

Image
  राजेंद्र बोड़ा लता मंगेशकर हिंदुस्तानी फिल्म संगीत की वे एक ऐसी गायिका है किनके कंठ में वीणावादिनी निवास करती है। उन्होंने अपने जीवन में कड़ी तपस्या से एक ऐसा मुकाम हासिल किया है जिसकी बराबरी शायद ही कोई कभी कर पाएगा। उनकी दोषरहित गायकी पर कभी कोई उंगली नहीं उठा सका। उन्होंने धन, यश और देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न जैसा मान सभी कुछ पाया। स्वर साम्राज्ञी के रूप में पूज्यनीय लता मंगेशकर पर अनेकों पुस्तकें लिखी जा चुकी है और पत्र-पत्रिकाओं में उन पर सदा ही कुछ न कुछ छपता ही रहता है। ऐसे में उनके बारे में कोई नई किताब लिखे तो स्वाभाविक रूप से पूछा जा सकता है कि इस गायिका के बारे में और क्या नया लिखा जा सकता है? मगर अजय देशपांडे की नई पुस्तक “लता श्रुति संवाद” इस धारणा को तोड़ती है कि लता,उनकी गायकी और उनके गानों के बारे में नया और क्या लिखा जा सकता है। देशपांडे साहब ने अपनी पुस्तक में लता की शुरुआती 17 वर्षों की संगीत यात्रा का, अपनी पसंद के 100 गानों के जरिये, विद्वत्तापूर्ण विवेचन किया है। अजय देशपांडे ने 2019 में अपनी पहली पुस्तक “”कला संगम” (खंड-1) में भारतीय कला और संस्कृति क

एक पत्रकार का आत्मकथ्य: पेशे में आदर्शों के तिरोहित होने की पीड़ा

Image
                                पुस्तक चर्चा -     --                                                                राजेंद्र बोड़ा राजस्थान में पत्रकारिता की कहानी अब तक अकादमिक स्तर पर ही कही जाती रही है जो नीरस बोझिल आंकड़ों के जरिये शैक्षणिक जगत के लोगों के परचों में ही जगह पाती रही है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि राज्य में पत्रकारिता के विकास के लंबे सफर के राही – खुद पत्रकारों ने – अपनी कहानी कभी नहीं कही। उन्हें शायद लगता रहा कि वे तो दूसरों की कहानियां कहते हैं, अपनी कहानी क्या कहें ! ऐसे में सक्रिय पत्रकारिता में पूरी उम्र गुज़ार देने वाला कोई पत्रकार यदि अपने जीवन के बारे में लिखता है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए।            मेवाड़ में उदयपुर के छोटे से कस्बे कापासन में बीसवी सदी के पूर्वार्ध में जन्मे विजय भण्डारी ने अपना आत्मकथ्य “भूलूं कैसे” लिख कर अपने गुज़रे जीवन तथा पत्रकारिता के पुराने दौर को याद किया है। उनका यह आत्मकथ्य पत्रकारिता का इतिहास तो नहीं है मगर आने वाले समय में यदि कोई शोधार्थी राज्य के पत्रकारिता के विभिन्न काल खंडों का इतिहास लिखने बैठेगा तब उसके लिए “भूल