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नशे के कारोबार से सरकार को कमाई

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राजेंद्र बोड़ा धन-दौलत और पद का नशा सारी चारित्रिक और नैतिकताओं को भुला देता है। हमारे संविधान को बनाने वाले ऐसे नशे में नहीं थे। वे बहुसंख्यक गरीब और पीड़ित लोगोंके लिए एक ऐसा देश बनाना चाहते थे जहां जन कवि शैलेंद्र के शब्दों में “ ना भूखों की भीड़ होगी ना दुखों का राज होगा ” । इसीलिए उन्होंने संविधान में निर्देश दिया कि राज्य सबको बराबरी का दर्जा देगा उनकी अच्छी शिक्षा अच्छे स्वास्थ्य और अच्छे पोषण की व्यवस्था करेगा। इसी के तहत हमारा  संविधान राज्य को निर्देशित करता है कि वह “ नशे का प्रतिषेध ” करने का अपना कर्तव्य पूरा करने का प्रयास करेगा।   संविधान के नीति निर्देश भारतीय संविधान के प्रावधानों को दो भागों में देखा जा सकता हैं। एक वह भाग जिसमें वर्णित धाराओं की पालना कराने के लिए नागरिक अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। याने कि यदि सरकार संविधान के अनुरूप काम नहीं करती तो आम जन अदलात के जरिये शासन को वैसा करने को बाध्य कर सकते है। संविधान की सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्या देश का कानून होता है। इसी प्रावधान के जरिये अनेकों मौकों पर सरकारों को जन हित में कदम उठाने को बा