मान न मान मैं तेरा महाराजा

राजेंद्र बोड़ा आज़ादी के वक़्त जब ब्रितानवी हकूमत ने भारतवासियों को सत्ता हस्तांतरित की तब अंग्रेजों की अधीनता में अपनी हुकूमतें चलाने वाले राजा महाराजाओं ने बड़ी कोशिशें की थी कि गोरे जब जाएं तब राज उनको ही सौप कर जायें क्योंकि संधियां करके उन्होंने अंग्रेजों की प्रभुता स्वीकार की थी तो अब वो जा रहे हैं तो सत्ता उन्हें वापस सौप कर जायें। मगर राजाशाही के एक न चली क्योंकि उनके पास सामान कुछ नहीं था – न नैतिक न भौतिक। पुरानी रियासतों के कुछ मुखियाओं ने भारतीय संघ में शामिल होने से ना नुकुर भी किया मगर लौह पुरुष के रूप प्रतिष्ठित लोकतान्त्रिक राजनेता तत्कालीन गृह मंत्री वल्लभ भाई पटेल जो राज्यों के विलीनीकरण का काम भी देख रहे थे के सामने किसी की न चली। अटल बिहारी वाजपेयी के शब्दों में “ सिंह वाहिनी दुर्गा ” के विशेषण से विभूषित तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने बाद में संविधान संशोधन के जरिये पूर्व रियासतों के मुखियाओं के राजा-महाराजा पदनामों के अलंकरण तथा सुविधाएं समाप्त कर दी और उन्हें भी आम नागरिकों की श्रेणी में डाल दिया। अपने लिए दुखदायी इस फैसले के...