संगीतकार दान सिंह : पुकारो मुझे नाम लेकर पुकारो
राजेंद्र बोड़ा मुंबई की सिने मायावी नगरी में केवल प्रतिभा के बूते सफलता हासिल नहीं होती। यहां भोलेपन के लिए कोई जगह नहीं। क्षूद्र ईर्षाओं, समूहों के हितों और फरेबी लोगों की भीड़ के बीच अपना स्थान बनाने के लिए यदि किसी में व्यावहारिक ज्ञान और चालाकी नहीं है तो बॉलीवुड की दुनिया उसे झटके से दूर फेंक देती है। हीरे ठुकरा दिये जाते हैं। संगीत का ऐसा ही एक नायाब हीरा पिछले दिनों संसार से चला बसा। जबर्दस्त प्रतिभा के धनी संगीतकार दान सिंह की हिन्दी सिने जगत ने उपेक्षा करके अपना ही नुकसान किया। पिछली सदी के साठ के दशक में मुंबई सिने संगीत में स्थान बनाने की जद्दोजहद करने के बाद अपने घर जयपुर लौट आए। मगर मुंबई को अलविदा कहने से पहले उन्होंने अपनी काबिलियत की जो झलक दिखाई उस पर हिंदुस्तानी फिल्म संगीत हमेशा नाज़ करेगा। याद कीजिये रिलीज न हो सकी फिल्म ‘भूल ना जाना’ का मुकेश का दर्दीले सुरों में गाया ‘गमे दिल किससे कहूं कोई गम ख़्वार नहीं’ या फिर जयपुर के ही हरिराम आचार्य का लिखा सोज़ में डूबा बड़ा ही खूबसूरत, गीता दत्त की सुरीली झंकार वाली आवाज़ में गाना ‘मेरे हमनशीं मेरे हमनवां मेरे पास आ मुझे ...