दो गहलोतों का अंतर : होनी का खेल
राजेंद्र बोड़ा साहिर लुधियानवी ने लिखा है “कदम कदम पर होनी बैठी अपना जाल बिछाए/ इस जीवन की राह में जाने कौन कहां रह जाये”। इसे होनी नहीं तो और क्या कहेंगे कि मुख्यमंत्री के रूप में तीसरी बार राजस्थान की सरकार चला रहे अशोक गहलोत जिनके इशारे के बिना कांग्रेस हिल नहीं सकती को राजनीति में पहली बार कोई पद दिलाने वाला नेता गुमनामी के गर्त में खो जाता है। यह नेता है जनार्दन सिंह गहलोत जिसकी 1970 के दशक में कांग्रेस के संजय गांधी युग में तूती बोलती थी। मगर होनी को कुछ और मंजूर रहा। दिग्गज नेता भैरोंसिंह शेखावत को चुनाव में पराजय का कड़वा स्वाद चखा कर विधान सभा में पहुंचने का करिश्मा दिखाने वाला यह नेता राजनीति में कोई बड़ी कामयाबी नहीं हासिलकर सका। अलबत्ता राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेलों की राजनीति में रम कर उसने अपनी हैसियत जरूर बनाए रखी। संस्मरणों के रूप में जनार्दन सिंह गहलोत ने अपना जीवन वृतांत ‘ संघर्ष से शिखर तक ’ पुस्तक में बहुत ही सीधी और सरल भाषा में प्रस्तुत किया है जो अत्यंत दिलचस्प बन पड़ा है। करीब पौने दो सौ पेजों के इस वृतांत में कांग्रेस के बीत गये स्वर्णिम युग का खट्टा-मीठा...