जाली किताब की जाली समीक्षा
- राजेन्द्र बोड़ा भाई कृष्ण कल्पित चमत्कार प्रिय कवि/लेखक हैं। उनकी सद्य प्रकाशित ' जाली किताब ' हाथ में आ गई है जो करीब सवा सौ पेजों की पतली सी पॉकेट बुक आकार की है। हिंद पॉकेट बुक्स से हम इतने पन्नों की इसी आकार की किताब कभी एक रुपए में खरीदते थे। वह एक रुपया आज की इस किताब की 199 रुपए की कीमत से कम नहीं था। तब एक रुपए में किसी जाली फिल्म के चार जाली दर्शक चवन्नी क्लास में उसे देख आते थे। आज इस किताब के दाम में ऐसा संभव नहीं है। इसलिए किसी जाली पाठक को यह किताब महंगी नहीं लगनी चाहिए भले ही उसे मंगाने के 50 रुपए अलग से देने पड़े हों। जाली किताब फर्ज़ी नहीं है। उसका लेखक जालसाज भी नहीं है। उसे किस्सेबाज जरूर कह सकते हैं जो इन दिनों अतीत के किस्से झोले में भर कर सुनाने को निकल पड़ा लगता है। इतिहास की स्मृतियां अतीतजीवियों को अति प्रिय होती है और हिंदुस्तानियों से बड़ा अतीतजीवी समुदाय और कहां मिलेगा! लोक स्मृति में रचे बसे ' पृथ्वीराज रासो ' नाम के महाकाव्य की प्रामाणिकता पर इतिहासकारों में विवाद है। कवि चंद बरदाई रचित ' पृथ्वीराज रासो ', जो "पृथ्वीराज...