तेल ने राजस्थान के लिए खजाना खोला : क्या शासन तैयार है इस पैसे के सदुपयोग के लिए ?


राजेंद्र बोड़ा

राजस्थान की धरती ने इस प्रदेश के पिछड़ेपन की कालिख को पोंछ कर इसे आधुनिक, खूबसूरत और सम्पन्न राज्य बनाने के लिए अपने गर्भ का खजाना खोल दिया है। पश्चिमी इलाक़े मारवाड़ के बाड़मेर जिले में मिले तेल से होने वाली राजस्व आय राजस्थान की सारी मुश्किलें आसान कर देने के लिए काफी है। एक मोटे अनुमान के अनुसार इस तेल की रॉयल्टी के रूप में राज्य सरकार को प्रति वर्ष करीब 200 करोड़ रुपयों का राजस्व मिलेगा जो हमें प्रकृति से मिला अनुदान है। राज्य सरकार को होने वाली यह अंतिरिक्त आय उसके अपने बजटीय प्रयासों का फल नहीं है। लेकिन जिस प्रकार की संवैधानिक वित्तीय व्यवस्था हमारे यहाँ है उसमें यह अतिरिक्त आय भी उस समेकित निधि में जाएगी जिसमें सभी प्रकार के कर राजस्व तथा अन्य स्रोतों से होने वाली आमद जाती है। इसी समेकित निधि से सरकार अपने सारे खर्चे चलाती है।

मगर क्या इस नई आय को अन्य राजस्व की तरह मान कर सामान्य तौर पर खर्च कर देना उचित होगा? या फिर राजस्थान की तक़दीर बदलने के लिए इस आय को खर्च करने की अलग से कोई योजना बनाना मुनासिब होगा जिससे यह पता चलता रहे कि तेल से मिलने वाली विशाल राशि किन मदों पर और किस तरह खर्च की जा रही है? इन सवालों को आज गंभीर चर्चा की दरकार है। अफसोस है कि विधानसभा में हमने जिन्हें चुन कर भेज रखा है उनमें ऐसा कोई सरोकार नज़र नहीं आता।

लोकतंत्र में आम जन सरकार चलने के लिए अपनी पसंद के प्रतिनिधि चुनते हैं. मगर निर्वाचित प्रतिनिधि चुने जाकर मालिक नहीं हो जाते. वे आम जन या कहें मतदाताओं के प्रतिनिधि की हैसियत से राज में बैठते हैं और शासन का संचालन करते हैं. इसलिए जरूरी है कि जनता के नुमाइंदे सरकार का काम-काज चलाते हुए बीच-बीच में आम जन से संवाद करें और प्रमुख मुद्दों पर उनकी राय जानें और उसी अनुरूप काम करें. किसी भी सरकार का प्रमुख काम होता है प्रशासनिक व्यवस्थाओं को चलाना और विकास के कामों को अंजाम देना. सरकार के सारे कामों के लिए खजाने में जो भी धन आता है वह आम जन की मिल्कियत होती है. शासन में बैठे लोग – राजनेता और नौकरशाह - उसके प्रबंधक भर होते हैं।

अचानक से हुई इस नई आय को कैसे खर्च किया जाय इस पर राज्य में आम सहमति बनानी होगी। इसके लिए जरूरी है इस बात पर बहस हो कि इस पैसे को खर्च करके ऐसी क्या अलग चीज की जा सकती है जो राजस्थान की प्रगति को नया आयाम दे और यहाँ के आम लोगों के जीवन को सुखी बना सके। खर्च की मौजूदा व्यवस्था में हम जानते हैं और जिसकी ताईद हर साल प्रस्तुत होने वाली सीएजी की रिपोर्टें करती हैं कि विकास के नाम पर होने वाले खर्च का अधिकतर पैसा निरर्थक चला जाता है और समूचा प्रशासन इस खेल में भृष्ट तंत्र में तब्दील हो चुका है। यदि तेल से होने वाली आय भी उसी तरह उड़ा दी गई और वह भ्रष्टाचार को समर्पित कर दी गई तो राजस्थान के लोगों के सपनें साकार करने का एक बड़ा अवसर हम खो देंगे।

इसलिए प्रशासनिक पारदर्शिता की आज बेहद जरूरत है। जिस प्रशासनिक तंत्र के कारण राजस्थान का विकास और इसकी उन्नति गति नहीं पकड़ पा रही है उसी के भरोसे तेल की रॉयल्टी की आय नहीं छोड़ी जा सकती। इसके लिए लोक भागीदारी से फैसले लेने की जरूरत है। निर्वाचित प्रतिनिधियों के जरिये लोगों की भागीदारी की लोकतांत्रिक व्यवस्था
के बावजूद आज लोगों की सीधी भागीदारी की भी महत्ती जरूरत है क्योंकि चुने हुए प्रतिनिधियों के सरोकार हम सबके सामने हैं।

तेल की रॉयल्टी के मामले में लोगों की सीधी भागीदारी इसलिए भी जरूरी है क्योंकि राज्य के बड़े हिट भी दांव पर है। हम जानते हैं कि केंद्र सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठान ओएनजीसी बाड़मेर से निकालने वाले तेल की रॉयल्टी के भुगतान को लेकर समस्या में है। ओएनजीसी और केयर्न एनर्जी के बीच करार के अनुसार केयर्न जितना भी तेल का दोहन करके उसे बेचेगी राज्य को उसकी रॉयल्टी का भुगतान केंद्र के सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठान को करना है। इस प्रतिष्ठान को अब लगता है कि केयर्न के साथ हुआ करार उसके माथे पड़ गया है और वह उससे राहत चाहता है।

दूसरी बात यह है कि राजस्थान के भूखंड से निकालने वाले तेल की रॉयल्टी तेल के बिक्री दाम की 20 प्रतिशन होती है। बाद के तेल की खोज और दोहन के जो ठेके दिये गए उनके लिए रॉयल्टी की दर 12.50 प्रतिशत ही है। ओ एन जी सी केंद्र को यह समझाने में लगा है कि दरों में यह असमानता दूर की जानी चाहिए। ओ एन जी सी को राजस्थान से निकालने वाले तेल की रॉयल्टी का भुगतान करने में परेशानी है। उसे लगता है कि बड़ी कमाई तो केयर्न कंपनी कर रही है रॉयल्टी भुगतान में जिसकी कोई भागीदारी नहीं है। जब कोई नहीं जानता था कि राजस्थान की भूमि से व्यावसायिक स्तर पर तेल निकलेगा तब केंद्र सरकार ने विदेशी खोजकर्ताओं को आमंत्रित करने के लिए यह आकर्षक नीति बनाई थी कि यदि तेल का व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन होता है तो उसकी रॉयल्टी का भुगतान ओ एन जी सी करेगी जिसके पास राजस्थान में तेल की खोज का लाइसेंस था मगर कुछ कर नहीं पा रही थी। मगर अब जब तेल मिल गया और केयर्न कंपनी के इसके बूते पर वारे न्यारे हो गए तब ओंजी सी को लगता है कि केयर्न के साथ करार घाटे का सौदा हो गया है। वह इससे निकालना चाहती है। उसका कहना है कि या तो केंद्र रॉयल्टी की दर घटा कर 12.50 प्रतिशत करे या उतना हिस्सा खुद वहाँ करे। भले ही यह ओ एन जी सी और केंद्र के बीच का मसला है मगर राजस्थान के वित्तीय हिट इससे जुड़े है। ऐसी परिस्थितियों में आवश्यक है कि राज्य केंद्र में कोई ऐसा खेल न होने दे जिससे उसकी आय पर असर पड़े। हम जानते हैं कि राजस्थान की केंद्र में बहुत अधिक नहीं चलती। ऐसा आज नहीं हमेशा से होता आया है। इसलिए जनता का दबाव बना रहना बहुत जरूरी है।

इसीलिए समय की माँग है की राज्य प्रशासन तेल से होने वाली आमद के बारे में पूरी तरह पारदर्शिता बरते और उसके बारे में फैसले केवल सचिवालय के बंद कमरों में ही नहीं ले बल्कि फैसलों से पहले सार्वजनिक बहस के अवसर दे। न केवल नई आमदनी की मात्रा को बचाए रखना है बल्कि पैसे का सदुपयोग भी करना है। वह तभी संभव है जब आम जन को नियमित रूप से लगातार यह जानकारी मिलती रहे कि सरकार क्या करने जा रही है। तभी ऐसे फैसलों पर अंकुश रखा का सकेगा जो राजस्थान के हित में नहीं हैं। केवल प्रशासनिक अधिकारियों के भरोसे सब कुछ नहीं छोड़ा जा सकता। यह अवसर है कि पारदर्शिता और जवाबदेही का दम भरने वाली निर्वाचित सरकार के प्रमुख नई लोकतान्त्रिक पहल करके दिखाये। वर्तमान में चल रही राजनैतिक प्रक्रिया की शून्यता के हालत में कैसे शासन को इसके लिए तैयार किया जाय यह सबके लिए सोचने की बात है।

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