श्रमजीवी पत्रकार का पत्रकारिता विश्वविद्यालय का कुलपति बनने का मायना


राजेंद्र बोड़ा

पहली बार कोई श्रमजीवी पत्रकार – ऐसा पत्रकार जिसकी आजीविका का साधन सिर्फ पत्रकारिता हो और वह भी किसी समाचार संस्थान में काम करते हुए – को किसी विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया है। विश्वविद्यालय भी पत्रकारिता विश्वविद्यालय।

राजस्थान के नए बने हरिदेव जोशी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पहले कुलपति के पद पर प्रतिष्ठित हिन्दूसमाचारपत्र के विशेष संवाददाता के रूप में काम कर रहे सनी सबेस्टियन का चयन इसीलिए राज्य के समूचे पत्रकार जगत के लिए गौरव की बात है।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तारीफ के हकदार हैं जिन्होंने नए पत्रकारिता विश्वविद्यालय के प्रमुख के पद पर किसी कार्यरत पत्रकार को चुना है वरना मौजूदा विश्वविद्यालयों में पत्रकारिता के पाठ्यक्रम चलाने वाले और इस पद पर अपना पहला हक मानने वाले अकादमिक लोगों की कमी नहीं है। भले ही उन लोगों के पास अपने अकादमिक और प्रशासनिक अनुभव के ढेर सारे दस्तावेज़ों की मोटी फाइलें हैं मगर गहलोत ने इस सच को समझा है कि ये सारे अकादमिक लोग जो विश्वविद्यालयों में पढ़ाते हैं और डिग्रियों के लिए मीडियाकर्मी तैयार करते हैं उनके पास समाचार मीडिया के तंत्र का सिर्फ किताबी ज्ञान होता है और उन्हें समाचार कक्षों की प्रत्यक्ष और व्यावहारिक जानकारी अत्यंत मामूली होती है। इसी समझ के चलते मुख्यमंत्री ने सबेस्टियन को पत्रकारिता का विश्वविद्यालव शुरू करने की जिम्मेवारी सौंपी है। इसके लिए गहलोत साधुवाद के पात्र हैं। 

सबेस्टियन सीधे मीडिया जगत से आते हैं। उन्होंने एक जागरूक और सक्रिय (एक्टिविस्ट) पत्रकार के रूप में अपनी अलग पहचान ही नहीं बनाई है बल्कि वे पढ़ते भी खूब है इसलिए आज की दुनिया और दुनियादारी से पूरी तरह वाकिफ हैं। पत्रकारों के हिमालयी अहंकार से कोसों दूर वे नम्रता की प्रतिमूर्ति हैं। वे राजनीति से पत्रकारिता से इतर कोई वास्ता नहीं रखते भले ही कुछ राजनीतिक मुद्दों पर उनकी अपनी प्रतिबद्धता क्यों न हो। एक रिपोर्टर के रूप में उनकी निजी सोच ने अन्य विचारों की अभिव्यक्ति को कभी आड़े नहीं आने दिया।

सबेस्टियन ने एक बड़ी जिम्मेवारी अपने कंधों पर ली है। एक तरफ राज्य का समूचा पत्रकार जगत उनसे यह आस लगाएगा कि वे अपने काम में सफल होकर इस धारणा को ध्वस्त करें कि पत्रकार केवल मीन-मेख निकालने का काम करते हैं और खुद कुछ क्रियात्मक कर दिखाने से उनका कोई वास्ता नहीं होता तो दूसरी तरफ गहलोत के चयन को एक समय सीमा में सही साबित करने की जिम्मेवारी उनके कंधों पर होगी।     

उनके लिए सबसे अच्छी बात यह है कि वे एक नई स्लेट पर इबारत लिखने वाले है। उन्हें सब कुछ नया बनाना है। नई परम्पराएँ स्थापित करनी हैं। हम मान के चलते हैं कि गहलोत ने गहरा आग्रह करके ही सबेस्टियन को पत्रकारिता विश्वविद्यालय का कुलपति बनने के लिए मनाया होगा। इसलिए उच्च शिक्षा के इस नए संस्थान का स्वरूप घड़ने और उसे साकार करने में गहलोत की सरकार उन्हें पूरी वित्तीय तथा अन्य मदद करेगी और अपनी नौकरशाही को इस विश्वविद्यालय के कम में किसी प्रकार का अड़ंगा लगाने पर लगाम रखेगी ऐसी भी हम मान कर चलते हैं।

यहां जोधपुर विश्वविद्यालय के पहले कुलपति बी. एन. झा का एक उदाहरण मौजूं होगा। वो वह जमाना था जब विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का रुतबा होता था। वे आवेदन करके और राजनैतिक गोटियाँ बैठा कर यह पद हासिल नहीं करते थे। वे सचिवालय में किसी नौकरशाह के बाहर बैठ कर इंतजार नहीं करते थे। यदि कभी कोई कुलपति सचिवालय आ भी जाता तो उसे पहले माले से नीचे उतर कर पोर्च तक खुद मुख्यमंत्री उसे छोडने आते थे। एक बार एक मुलाक़ात में तब के मुख्यमंत्री मोहन लाल सुखाडिया के मुंह से ऐसे ही निकाल गया कि झा साहब आपकी यूनिवर्सिटी तो खर्चा ही खर्चा करती है। हमारी सरकार की माली हालत भी तो देखिये। मगर झा साब ने पलट कर कहा किसने आपको पीले चावल दिये थे कि आप विश्वविध्यालय खोलें? विश्वविद्यालय कोई मुनाफा कमाने का संस्थान नहीं हैं। आपने इसे बनाया है तो उसे ठीक से चलाने के लिए पैसों की व्यवस्था करना आपका काम है। एक बार विश्वविद्यालय खोल कर आप पीछे नहीं हट सकते।

इसीलिए जब गहलोत ने पत्रकारिता सहित कुछ और नए विश्व विद्यालय खोलने की घोषणा की थी तब सभी अवाक थे कि मौजूदा विश्वविद्यालयों, जिनकी हालत बद से बदतर होती जा रही है, को तो संभाला ही नहीं जा पा रहा है फिर ये नए विश्वविद्यालयों का शौक कैसा। फिर भी सबेस्टियन की नियुक्ति आशा की किरण दिखाती है। सबेस्टियन के प्रति गहलोत का अपनत्व भाव यह सुनिश्चित करेगा कि प्रशासनिक मशीनरी उन्हें हल्के से नहीं ले और वह नए संस्थान की स्वायत्तता का सम्मान करे और कुलपति को पैसे के लिए बाबुओं के चक्कर नहीं लगाने पड़ें
हम मान के चलते हैं कि सबेस्टियन और गहलोत के दिमाग में नए पत्रकारिता विश्वविद्यालय का कोई खाका जरूर रहा होगा और अब दोनों मिल कर उस खाके को अमली जामा पहनाने का शिद्दत के साथ यत्न करेंगे। 
  
हमारी याने राजस्थान के पत्रकार जगत की सबेस्टियन से बहुत अपेक्षाएँ हैं। हम चाहेंगे यह विश्वविद्यालय पत्रकारों की नई पीढ़ी में पत्रकारिता के उच्चतम आदर्शों की ऐसी समझ पैदा करे जो उनके व्यवहार में परिलक्षित हो ताकि समाचार माध्यम एक बहुसांस्कृतिक सहिष्णु समाज रचने में मदद कर सकें। मुक्त समाज में जटिल परिस्थितियों में उलझे सत्य को समय की सीमाओं में जानने और उसे आम जन तक स्पष्ट तरीके से संप्रेषित कर सकने की क्षमता पत्रकारों की नई पीढ़ी में पैदा कर सके तो ही नया पत्रकारिता विश्वविद्यालय राज्य के लिए शुभ होगा, वरना सरकारी या निजी क्षेत्र के लिए पीआरओ और उत्पाद बेचने के लिए विज्ञापन का काम करने वाले कारीगर बनाने का काम तो सभी पत्रकारिता शिक्षा के संस्थान अभी कर ही रहे हैं।

राजस्थान का पत्रकार जगत चाहता है नया विश्वविद्यालय डिग्रियाँ देने की मशीन बन कर नहीं रह जाये और वह स्थानीय समाज के हित में अपना अवदान करे। उच्च शिक्षा में यह अवदान कोई विश्वविद्यालय स्थानीय जरूरतों के अनुरूप अध्ययन, अनुसंधान और डोक्यूमेंटेशन के जरिये करता है। अपेक्षा है कि हरिदेव जोशी पत्रकारिया विश्वविद्यालय एक ऐसा संस्थान बनेगा जो इन अवदानों के जरिये समाज के साथ ज्ञान का साझा करेगा और समय पर सही फैसला ले सकने वाला जागरूक समाज बनाने में मदद करेगा

मुख्यधारा के समाचार माध्यम अब जब अपनी साख खोते जा रहें हों और लोग प्रिंट, रेडियो और टीवी से इतर अन्य इंटरनेट आधारित संचार माध्यमों की ओर तेजी से आकर्षित होते जा रहें हों और अपनी संवादात्मक (इंटरैक्टिव) ताकत के बल पर ये माध्यम समाज में प्रभावी संचार और संवाद स्थापित कर सक्ने का अपना वजूद बना रहे हों तब नए विश्वविद्यालय की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।

शिक्षा का क्षेत्र अब बाज़ार के लिए हो गया है। वह व्यवसायगत हो गया है। विश्वविद्यालय वह स्रोत होता है जहां से ज्ञान का झरना फूटता है जो आगे बह कर हर एक की प्यास बुझाता है। शिक्षा का यह संस्थान सरकारी क्षेत्र में है इसलिए सबेस्टियन से हम पत्रकारों की यह अपेक्षा नावाजिब नहीं होगी कि यहां से ऐसी धारा बहे जो पत्रकारों की नई पीढ़ी को उनके लिए करियर की असीम संभावनाओं को हासिल करने की काबिलियत तो दे ही, साथ ही उन्हें वह ताकत भी दे कि वे प्रलोभनों से दूर रह कर, अपने व्यक्तिगत विचारों से निरपेक्ष बन कर समाज को परेशान कर रहे जटिल मुद्दों पर सार्थक बहस छेड़ सकें।

ऐसा तब हो सकता है जब इस विश्वविद्यालय में नए विचारों, नए विश्वासों, और नए तरीकों से सरोबार प्राध्यापक हों जो राजस्थान को गहराई से जानते हों। ऐसी फ़ैकल्टी को खोज कर लाना इस काम को शुरू करने की पहली शर्त है। इसके लिए सेबेस्टियन को वर्तमान अकादमिक क्षेत्र के ठहरे और सड़ चले पानी में डुबकी लगाने की बजाय उसके बाहर से काबिल लोगों को वैसे ही लाना होगा जैसे गहलोत खुद उन्हें परम्पराओं से बाहर जाकर ले कर आए हैं

हम चाहेंगे कि नए विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम अब तक प्रचलित पाठ्यक्रमों से एकदम अलग हों, अभिनव हों। ऐसा इसलिए क्योंकि आज की जरूरतें, मुद्दे, और दिलचस्पियां बिलकुल अलग हैं। नए पाठ्यक्रम और अनुसंधान के काम ही नए विश्वविद्यालय को अपनी अलग पहचान दें सकते हैं। ऐसा कर सकने का जज़्बा सबेस्टियन के पास है। मुख्यमंत्री गहलोत और राजस्थान के पत्रकार जगत की आशाओं पर खरा उतरने के लिए उन्हें अपना अलग और नया रास्ता बनाना होगा। उन्हें अकादमिक क्षेत्र के ठहरे पानी की मछलियों के पास जाने की जरूरत नहीं है। उनसे परिवर्तन की लहर नहीं आ सकती।
सबेस्टियन को पत्रकारिता विश्वविद्यालय का कुलपति बना कर गहलोत ने इतिहास रचा है। अब सबेस्टिययन के लिए यही शुभकामना है कि वे इतिहास रचें और उच्च शिक्षा के ऐसे संस्थान की रचना करें जो राज्य के लिए और समस्त पत्रकार जगत के लिए गर्व का सबब बने। 

(आलेख पिंक सिटी प्रेस क्लब के मुखपत्र 'पाती' में प्रकाशित)

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