स्टीफ़न हॉकिंग : अद्भुत दिमाग वाला व्यक्ति जिसने ब्रह्मांड के रहस्य खोले
राजेंद्र बोड़ा
स्टीफ़न हॉकिंग अपनी पीढ़ी के सबसे
विलक्षण भौतिक विज्ञानी थे। ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्य की खोज में उनका
योगदान अतुलनीय है। वे एक अद्भुत दिमाग और बौद्धिक क्षमता रखते थे। भौतिक विज्ञान की जटिलताओं को सरलता से सामान्य जन को समझा
देने की वे अतिरिक्त योग्यता रखते थे। उनकी अकादमिक विराटता
इतनी थी के वे आइन्स्टाइन के सापेक्षतावाद के
सिद्धांत और क्वांटम फिजिक्स को समाहित करते हुए
ब्रह्मांड के निर्माण के उस क्षण तक पहुंचे थे जब एक धमाके के साथ सृष्टि बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई और समय
प्रारंभ हुआ।
हॉकिंग ने विज्ञान के क्षेत्र में अपने काम से दुनियाभर में
करोड़ों युवाओं को विज्ञान पढ़ने के लिए प्रेरित किया। अन्तरिक्ष, ब्रह्मांड और भौतिक विज्ञान के रहस्यों को समझाती उनकी सहज-सरल भाषा में
लिखी किताबें‘द हिस्ट्री ऑफ टाईम’तथा‘ग्रांड डिज़ाइन’ सबसे अधिक बिकने
वाली किताबों में शुमार हैं। उनका लेखन सिखाता है कि कैसे जटिल विषय सरल भाषा में
संप्रेषित किए जा सकते हैं।
हॉकिंग बड़े मनोरंजक और मजेदार व्यक्ति
थे। उनका यह रूप भारतीयों ने नजदीक से तब देखा जब वे वर्ष 2001 में 16 दिन की भारत यात्रा पर आए। दुनिया भर के करोड़ों युवाओं को
विज्ञान की शिक्षा के प्रति प्रेरित करने वाले इन वैज्ञानिक ने अपना 59 वां
जन्मदिन मुंबई में मनाया था। वैसे यह उनकी
दूसरी भारत यात्रा थी। पहली बार वे 1959 में यहाँ आए थे।
वे 'टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ
फंडामेंटल रिसर्च' के एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने मुंबई आये एक आठ वैज्ञानिकों के प्रतिनिधि मण्डल के सदस्य के रूप में आए थे। उस
अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के समन्वयक रहे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड रिसर्च के
प्रोफेसर सुनील मुखी ने याद करते
हुए बीबीसी को बताया कि सम्मेलन में हॉकिंग सबसे मनोरंजक और मजेदार व्यक्ति थे। अपने सम्मान में ओबेरॉय टावर (अब ट्राइडेंट) में आयोजित रात्रिभोज में अपने
व्हील चेयर में सीमित होने पर भी मनोरंजन कार्यक्रमों में भाग लिया था और हिन्दी फिल्मी गानों पर थिरकते हुए अपनी व्हील चेयर गोल-गोल
घुमाने लगे थे। मुखी कहते हैं कि दुर्भाग्य से उस पल को मैं कैद नहीं कर पाया क्योंकि तब हम लोगों के पास
स्मार्ट फोन नहीं थे।
अपनी 2001 की यात्रा के दौरान वे दिल्ली
भी आये जहां उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति के. आर. नारायणन से भी मुलाक़ात की।
वे दिल्ली के जंतर-मंत्र और क़ुतुब मीनार भी देखने गए। तब की
ट्रिब्यून अखबार की रिपोर्ट में उनकी टिप्पणी छपी “मैं दिल्ली देखना चाहता था। मगर मैं इस मीनार के बारे में नहीं
जानता था। पर यह शानदार है”।
हॉकिंग और प्रमुख भारतीय
खगोल वैज्ञानिक जयंत विष्णु नार्लीकर केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में साथ पढ़ते थे। हॉकिंग नार्लीकर से दो साल जूनियर थे। नार्लीकर उन दिनों की
याद करते हुए कहते हैं कि उस वक़्त उनकी प्रतिभा के बारे में कोई नहीं जानता था। वे
भी बाके अन्य विद्यार्थियों की तरह ही थे। लेकिन कुछ सालों में ही लोगों को अंदाज़ा
हो गया कि स्टीफ़न में कुछ खास बात है।
नार्लीकर के शब्दों में : “मुझे याद है कि ब्रिटेन की ग्रीनविच के
शोध विद्यालय ने 1961 में एक साइंस सम्मेलन आयोजित किया था। वहां स्टीफ़न हॉकिंग से
पहलीबार मेरी सीधी मुलाक़ात हुई। उस वक़्त वो ऑक्सफ़ोर्ड विद्यालय में पढ़ते थे। मैं भी एक छात्र ही था लेकिन मुझे वहां एक
लेक्चर देने के लिए बुलाया गया था। लेक्चर शुरू होने के कुछ देर बाद ही मैंने पाया कि एक स्टूडेंट
बहुत ज्यादा सवाल कर रहा है। वो थे स्टीफ़न हॉकिंग। उन्होंने मुझ पर मानो सवालों की बौछार कर
दी थी। वो ब्रह्मांड के विस्तार के बारे में और बिग बाइंग के सिद्धान्त के बारे में जानना चाहते थे।
मैंने उनके सभी सवालों के जवाब देने की कोशिश की लेकिन ब्रह्मांड से जुड़े उनके
सवाल पाइने होते चले गए। वे इस विषय पर गंभीर थे”।
सम्मेलन के बाद नार्लीकर और हॉकिंग ने टेबल टेनिस खेली। “हमारे बीच दो मैच हुए और दोनों ही मैच मैं जीता।
हॉकिंग ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्य को सुलझाने के लिए भौतिक विज्ञान के कई
अलग-अलग लेकिन समान रूप से मूलभूत क्षेत्र जैसे गुरुत्वाकर्षण, ब्रह्मांड विज्ञान, क्वांटम थ्योरी, सूचना सिद्धान्त
और थर्मोडाइनेमिक्स को एक साथ ले आए थे।
हमेशा व्हील चेयर पर रहने वाले हॉकिंग आम
इन्सानों से अलग दिखते थे। अपनी जानलेवा बीमारी के चलते कंप्यूटर और कई तरह के उन्नत उपकरणों के जरिये संवाद करते थे। भौतिक
विज्ञान की दुनिया में अहम योगदान देने वाला यह वैज्ञानिक हमारे दौर का सबसे चर्चित वैज्ञानिकों में से एक था। ब्रह्मांड के निर्माण के
उनके सिद्धान्त को वैज्ञानिकों के समुदाय ने बहुत हद तक स्वीकार कर लिया है।
हॉकिंग का सबसे उल्लेखनीय काम ब्लैक होल
के क्षेत्र में रहा। सामान्य सापेक्षता और ब्लैक होल का आध्यान करते हुए उनकी
असाधारण मानसिक क्षमता सामने आने
लगी। उन्हें एहसास हुआ
कि बिग बैंग दरअसल ब्लैक होल का उलटा पतन ही है। उन्होंने एक अन्य वैज्ञानिक पेनरोज़ के साथ मिल कर इस विचार
को और विकसित किया और दोनों ने 1970 में एक शोधपत्र में दर्शाया कि सामान्य
सापेक्षता का अर्थ यह है कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति ब्लैक होल के केंद्र (सिंगुलैरिटी) से ही हुई।
उन्होंने सृष्टि के निर्माण के लिए गुरुत्वाकर्षण के नियम को श्रेय दिया। उनका कहना था कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति को समझने के लिए
किसी ईश्वर की कल्पना करना आवश्यक नहीं है। ब्रह्मांड की उत्पत्ति ‘बिग बैंग’ के सिद्धान्त के अनुसार जिस धमाके के साथ हुई वह भौतिकी सिद्धांतो का
परिणाम था, न कि कोई दैवीय शक्ति। इस कथन के लिए हुई अपनी आलोचनाओं का जवाब देते हुए
स्टीफ़न हॉकिंग ने कहा "ईश्वर का अस्तित्व नहीं है यह साबित नहीं किया जा सकता, लेकिन विज्ञान
ईश्वर को अनावश्यक बनाता है"। उनकी अपनी धार्मिक आस्था के बारे में पूछे जाने पर
उनका जवाब था कि वे किसी व्यक्तिगत ईश्वर में विश्वास नहीं करते।
अपनी खोज के बारे में वे कहते थे “मुझे सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि
मैंने ब्रह्मांड को समझने अपनी भूमिका निभाई, इसके रहस्य लोगों के लिए खोले और इस पर किगे शोध में अपना योगदान दे पाया। मुझे
गर्व होता है जब लोगों की भीड़
मेरे काम को जानना चाहती है”।
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