खेल राजनीति का दरियादिल राजनेता
- राजेन्द्र बोड़ा
खेलों की
राजनीति में रमे लोगों की दरियादिली के किस्से खूब मिलते हैं और वे दोस्तों की
महफिलों में चटखारे लेकर सुनाए भी जाते हैं। खेल राजनीति की सत्ता को गरिमा देने
के लिए बाद में इन नेताओं को खेल प्रशासक का नाम
दे दिया गया भले ही उनमें से अधिकांश कभी खुद खिलाड़ी न रहे हों।
खेलनेताओं
की शान इसी में रही है कि वे किस प्रकार अपने चहेते खिलाड़ियों को राष्ट्रीय और
अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में खिलवाने भिजवा सकें और अपने समर्थकों, प्रशंसकों और दोस्तों को देश विदेश के दौरे करवा कर मजे करवा सकें। एक
नज़रिये से खेल जगत की सत्ता भी राज की सत्ता से कम नहीं रही है। इसलिए खेल संगठनों
पर कब्जा करने का संघर्ष संसद या विधानसभा के निर्वाचन की प्रतिस्पर्धा से कम नहीं
होता।
इसकी कुछ
झलकियां खेल राजनीति में सिरमौर रहे राजनेता स्वर्गीय जनार्दन सिंह गहलोत के
आत्मकथ्य वाली पुस्तक में मिलती हैं जिसका सम्पादन हमारे दो प्रिय साथियों अनिल
चतुर्वेदी तथा संतोष निर्मल ने किया था। इस पुस्तक का हल्का सा परिचय हमने कुछ समय
पूर्व यहीं पर साझा किया था।
इस पुस्तक
में सबसे दिलचस्प किस्सा है गहलोत का जयपुर के लोक आस्था के सबसे अधिक पूजित और
धनी मोतीडूंगरी वाले गणेश मंदिर के महंत को 2008 में चीन की राजधानी बीजिंग में हुए ओलंपिक खेलों में अपने साथ ले
जाना।
पुस्तक
में जनार्दन गहलोत बताते हैं, "मैं अपने
साथ मोती डूंगरी (गणेश मंदिर) के महंत कैलाश शर्मा को विशेष आमंत्रित के रूप में
ले गया...महंत कैलाश को हमने भारतीय दल में शामिल करवा दिया था। वह दल के सदस्य बन
कर ही बीजिंग गए।"
तब गहलोत
इंडियन ओलंपिक एसोसियेशन के उपाध्यक्ष थे तथा कांग्रेस के नेता सुरेश कलमाडी उसके
अध्यक्ष थे जो बाद में 2010 के
कॉमनवेल्थ गेम्स के भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल गये।
गहलोत ने
लिखा: "महंत जी को साथ ले जाने का लाभ ये रहा कि चीन का खाना खाने से हम बच
गए। महंत जी के चीन में कई भक्त मिल गए। वे रोज कुछ न कुछ प्रसाद स्वरूप ले आते।
इससे हमें खाने को लेकर कोई दिक्कत नहीं हुई। रोज इतने भारतीय व्यंजन आ जाते कि हम
अपने दल के अन्य सदस्यों को भी उपलब्ध करा देते। दिन में हम खेल प्रतियोगिता देखने
निकलते और रात में शुद्ध भारतीय खाना खाते। मेरा छोटा बेटा कार्तिकेय भी साथ गया
था।”
इसी बीजिंग
ओलंपिक की एक और घटना जनार्दन गहलोत ने अपनी पुस्तक में साझा की। "राजस्थान
पत्रिका के गुलाब कोठारी के पुत्र व पुत्रवधु भी बीजिंग पहुंचे। कैलाश जी ने उनका
परिचय कराया और कहा कि ये कुछ खेल प्रतियोगिताएं देखना चाहते हैं। मैंने उनके लिए
भी टिकटों का इंतजाम कराया।"
प्रदेश
कांग्रेस में सक्रिय रहे राजेंद्र शेखर, जनार्दन गहलोत
के काफी निकट थे। जब अखिल भारतीय युवक कांग्रेस के अध्यक्ष प्रियरंजन दास मुंशी ने
जनार्दन साहब को संगठन के राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेवारी सौंपी तो उन्होंने
राजस्थान युवक कांग्रेस का अध्यक्ष अपने खास राजेंद्र शेखर को बनवा दिया। बाद में
खेलों की राजनीति करते हुए गहलोत ने शेखर को राजस्थान ओलंपिक संघ का सचिव भी बना
दिया और उन्हें ‘हिरोशिमा एशियाड’ में अपने साथ जापान ले गये।
इससे
पहले गहलोत 1986 में दक्षिण कोरिया के सियोल में हुए
एशियाई खेलों में "अपने साथी खेल पत्रकार मोहम्मद यासीन को भी" साथ ले
गए। यासीन बाद में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के दूसरे कार्यकाल में प्रेस सलाहकार भी
बने।
खेल
राजनीति के अंतर्राष्ट्रीय दांव-पेचों की झलक भी पुस्तक में मिलती है। इसका एक दृष्टांत
ही यहां काफी है: हिरोशिमा एशियाड में जनार्दन गहलोत भारतीय दल के ‘चीफ डि मिशन’ बन कर
गए थे। वहां एशिया कबड्डी फेडरेशन के चुनाव होने थे। उस समय फेडरेशन के महासचिव
कोलकाता के ए. के. शाह हुआ करते थे। गहलोत कहते हैं "उनके साथ मेरा मतभेद हो
गया। मैं अन्य खेलों के पदक वितरण समारोहों में व्यस्त रहा। उधर शाह जापान कबड्डी
संघ के लोगों से जा मिले। उन्होंने मेरी गैर मौजूदगी में एशिया कबड्डी फेडरेशन के
चुनाव करा लिए जिसमें मुझे हटा कर जापान कबड्डी संघ के एक पदाधिकारी जो वहां के
शिक्षा मंत्री थे को अध्यक्ष बनवा दिया... मैने शाह से कहा, तुमने यहां तो मेरी कारसेवा कर दी, लेकिन अब तुम भी ज्यादा समय नहीं रह पाओगे। मैने भारत लौटते ही कुरनूल
(आंध्र प्रदेश) में भारतीय कबड्डी फेडरेशन की साधारण सभा में शाह के खिलाफ
अविश्वास प्रस्ताव लाकर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया।”
मगर
गहलोत यहीं नहीं रुके। उन्होंने 1998 में
बैंकाक में आयोजित एशियाई खेलों के दौरान एशिया कबड्डी फेडरेशन के चार साल बाद
होने वाले चुनाव में भी शाह का “पत्ता कटवा दिया”। हिरोशिमा में शाह खुद एशिया
फेडरेशन के सचिव बन गए थे। "मैं शाह को एशिया फेडरेशन की बॉडी से भी बाहर
कराने का लक्ष्य लेकर बैंकाक गया था। इसके लिये भारतीय दल के सदस्यों के रूप में (मैं)
अपने खर्चे पर 15 लोगों को अलग से ले गया। उनके लिए वहां
इंतजाम करना कठिन था। मैने अपने मित्र राजेंद्र बरडिया से आग्रह किया। उनका बैंकाक
में गेस्ट हाउस है। वहां खाना बनाने के लिए एक पंडित भी था। मैने सभी 15 लोगों को बरडिया के गेस्ट हाउस में ठहरा दिया...
हमारे पास जीतने लायक वोट नहीं हो पा रहे थे, इसलिए एक दांव चला। मैने पाकिस्तान कबड्डी संघ के अध्यक्ष ख्वाजा अली
मोहम्मद का नाम एशिया फेडरेशन के महासचिव पद के लिए प्रस्तावित कर दिया। तब मैं
पुनः अध्यक्ष और पाक प्रतिनिधि सचिव बन गए।"
गहलोत अपने
आत्मकथ्य में स्वीकार करते हैं कि "शाह को हटाने के लिए मुझे सचिव पद पाक को
देना पड गया।"
कोई
दरियादिल राजनेता ही ऐसी स्पष्ट बयानी कर सकता है।
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