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गजेंद्र नारायण सिंह: संगीत को तिजारत से दूर रखने का अलख जगाने वाला नहीं रहा

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                              -- राजेंद्र बोड़ा पर्फ़ोर्मिंग आर्टिस्ट समीक्षक नहीं होते और समीक्षक पर्फ़ोर्मिंग आर्टिस्ट नहीं होते। मगर गजेंद्र नारायण सिंह विलक्षण रूप से ये दोनों थे। वे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के कलाविद् होने के साथ-साथ भारतीय शास्त्रीय संगीत के समीक्षक और इतिहासकार भी थे। उनका यह बहुआयामी व्यक्तित्व उन्हें भीड़ से अलग करता था। ऐसे गुणवंत कलाकार , पारखी समीक्षक और भारतीय संगीत को बढ़ावा देने में हमेशा जुटे रहने वाले गजेंद्र नारायण सिंह के सोमवार को पटना में निधन से भारतीय संगीत प्रेमियों में शोक है।       10 दिसंबर 1939 को एक संभ्रांत बिहारी परिवार में जन्मे सिंह को बचपन से ही संगीत का जुनून रहा और उन्होंने 18 वर्षों तक गुरु- शिष्य परंपरा में संगीत का कडा प्रशिक्षण ग्वालियर घराने के सुविख्यात गायक चूड़ा मणि और पद्मविभूषण पंडित विनायक बुआ पटवर्धन से जैसों से पाया। कथकली के जाने माने विद्वान केलू नाय र इनके नृत्य गुरु रहे। उन्हों ने पंडित नारायण राव व्यास , पंडित मल्लिकार्जुन मंसूर , उस्ताद फ़हीमुद्दीन डागर , उस्ताद विलायत खां , जैसे संगीतज्ञों से