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राजस्थान में सामंतवाद

रामचंद्र बोडा राजस्थान में सामंतवाद की बात की जाती रही है. कर्नल जेम्स टाड़ ने इसको विस्तार दिया है. जेम्स टाड़ ने इसकी तुलना योरूप में मध्य युग में पनपे सामंतवाद से की है. राजस्थान के कतिपय इतिहासकारों ने, जिसमें राम प्रसाद व्यास शामिल हैं, इस राज्य में पनपे सामंतवाद को योरूप में पनपे सामंतवाद से अलग माना है. राजस्थान को लेकर जितनी सामग्री जेम्स टाड़ ने एकत्रित की है उतनी सामग्री किसी अन्य ने नहीं की है. इसलिए उसे ही यहाँ वाद-विवाद का आधार बनाया गया है. कर्नल टाड़ इस सम्बन्ध में संश्कीय होते हुए भी सामंतवादी पद्धति को विस्थापित करने का प्रयास किया है. कर्नल टाड़ ने ऐसा सामंतवादी परिभाषा देकर नहीं किया है. वे योरूप के उन लेखकों में से हैं जो सामंतवाद को बिना परिभाषित किए सामंती पद्धति की बात करते है. कर्नल टाड़ ने अपनी सामंतवाद की अवधारणा में हेनरी हेलम के अलावा मंतास्क, ह्यूम तथा गिब्बन को आधार बनाया है. सामंतवाद का कच्चा चिट्ठा अपनी कालजयी पुस्तक ‘राजस्थान की वात और ख्यात’ में प्रस्तुत किया है. राजस्थान में मध्य युग में सामंतवाद की परिरेखायें बनने लगी थी. विशेषकर यहाँ के देवधर्मी पित