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नए मध्यम वर्ग का युवा चेहरा क्या क्रांति का वाहक बनेगा ?

-राजेंद्र बोड़ा अन्ना हज़ारे और अरविंद केजड़ीवाल की भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम और अब दिल्ली में हुए वीभत्स गैंग रेप के विरोध में प्रदर्शनों ने यह दिखाया है कि नए पनपे मध्यम वर्ग की युवा पीढ़ी  देश की वर्तमान व्यवस्था से राजी नहीं है। उनका आक्रोश सरकारी व्यवस्थाओं – सही में अव्यवस्थाओं – के खिलाफ अब फूट पड़ रहा है। यह प्रदर्शित आक्रोश किस दिशा की ओर संकेत करता है और उसके परिणाम देश की राजनीति पर क्या असर डाल सकते हैं इस पर लोग बातें करते हैं। बहुतों को इन प्रदर्शनों से बड़ी आशाएँ हैं तो अन्य बहुत से इसे थोड़े समय का बुलबुला मानते हैं। नव मध्यम वर्ग जो पीढ़ी हमें अभी दिल्ली या अन्य जगहों पर सड़कों पर आक्रोशित खड़ी नज़र आती है क्या वह देश में किसी क्रान्ति की आहट देती है ? क्या यह समूह जो सड़कों पर टीवी चैनलों के सम्मुख बड़ा वाचाल है और अपनी ही वर्ग की लड़की के साथ हुए सामूहिक बलात्कार और हत्या पर अति उग्र भाषा में अपराधियों को सारे आप फांसी की वकालत कर रहा है उससे किसी ऐसे बदलाव की जमीन तैयार हो रही है जिसमें से आदर्श समाज और राज्य व्यवस्था की कोंपल फूटेगी ? यह उबाल आम जन को