नए मध्यम वर्ग का युवा चेहरा क्या क्रांति का वाहक बनेगा ?


-राजेंद्र बोड़ा

अन्ना हज़ारे और अरविंद केजड़ीवाल की भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम और अब दिल्ली में हुए वीभत्स गैंग रेप के विरोध में प्रदर्शनों ने यह दिखाया है कि नए पनपे मध्यम वर्ग की युवा पीढ़ी  देश की वर्तमान व्यवस्था से राजी नहीं है। उनका आक्रोश सरकारी व्यवस्थाओं – सही में अव्यवस्थाओं – के खिलाफ अब फूट पड़ रहा है। यह प्रदर्शित आक्रोश किस दिशा की ओर संकेत करता है और उसके परिणाम देश की राजनीति पर क्या असर डाल सकते हैं इस पर लोग बातें करते हैं। बहुतों को इन प्रदर्शनों से बड़ी आशाएँ हैं तो अन्य बहुत से इसे थोड़े समय का बुलबुला मानते हैं।

नव मध्यम वर्ग जो पीढ़ी हमें अभी दिल्ली या अन्य जगहों पर सड़कों पर आक्रोशित खड़ी नज़र आती है क्या वह देश में किसी क्रान्ति की आहट देती है? क्या यह समूह जो सड़कों पर टीवी चैनलों के सम्मुख बड़ा वाचाल है और अपनी ही वर्ग की लड़की के साथ हुए सामूहिक बलात्कार और हत्या पर अति उग्र भाषा में अपराधियों को सारे आप फांसी की वकालत कर रहा है उससे किसी ऐसे बदलाव की जमीन तैयार हो रही है जिसमें से आदर्श समाज और राज्य व्यवस्था की कोंपल फूटेगी? यह उबाल आम जन को सकारात्मक दिशा का बोध दे रहा है और बाज़ार उन्मुख मीडिया उसे आगे बढ़ कर अपना रहा है।

इन सब सवालों के तैयार शुदा जवाब किसी के पास नहीं है। यह पीढ़ी जिसके आक्रोश पर मीडिया आम जन में बेहतर भविस्य की आशाएँ जगा रहा है वह मूलतः निम्न मध्यम वर्ग से आती है। भारत में यह नया मध्यम वर्ग उभरा है। अर्थवेत्ता बताते हैं कि यह वह वर्ग है जिसकी  घर में खर्च कर सकने वाली आय पिछले ढाई दशकों में दुगनी से अधिक हो गई है। इसके कारण उनके उपभोग की बानगी बादल गई है। और यह वर्ग इस वक़्त तेजी से बढ़ रहा है। देश की आबादी का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा अब मध्यम वर्ग का माना जा रहा है। इसी के कारण उपभोक्ता बाज़ार भी उठान पर है।

हम क्रियाशीलता के एक ऐसे युग में जी रहे हैं जब बेहतर शासन की आकांक्षा बहुत अधिक बढ़ी हुई है। इस वर्ग का भय और विश्वास उसके आक्रोश को दहकाता है। मगर वर्तमान में यह वर्ग राजनीति के प्रति वह उदासीन है। राजनीति उस अर्थ में जिसमें विचारधारा होती है, आदर्श होता है और जो लोकतान्त्रिक व्यवस्था में सबको बराबरी का हक देता है।

यह वह मध्यम वर्ग है जो कर अदा करता है और जो एक बेहतर भविष्य का सपना देखता है। पैसा, चमक, और ताकत उसे लुभाते हैं।इसी मध्यम वर्ग का सबसे प्रमुख समूह वह सक्रियतावादी सभ्य समाज है जो इन दिनों मीडिया की नज़रों का तारा बना हुआ है।
  
मध्यम वर्ग तभी सड़क पर आता है जब उसके अपने हित दांव पर होते हैं। सड़क पर चलने वाला अभियान निम्न मध्यम वर्ग से उपजता है जो यह महसूस करता है कि राज्य उसे तरक्की से वंचिक कर रहा है। इससे उसमें कुंठा की हद तक नैराश्य की भावना पैदा होती है।

मध्यम वर्ग का एक सच और होता है वह यह की उसका अपना एकाकी जगत होता है और वह समस्याओं को अपने नज़रिये से देखते हैं। वह यह कि कोई समस्या उन्हें कितनी प्रभावित करती है।

एक बात और समझने की है कि देश में मध्यम वर्ग और राज्य के सम्बन्धों की नई रूपरेखा बन रही है। जिस प्रकार देश में परिस्थितियां बन रही थी उसमें मध्यम वर्ग की सक्रियता का सामने आना अवश्यंभावी था। मगर दिलचस्प बात यह होती है कि मध्यम वर्ग के असंतोष के प्रदर्शन का उद्धेश्य सरकार को गिराने, उसे बदलने का नहीं होता। उसके सरोकार बहुत संकुचित होते हैं।

हमारे देश में वर्ग संरचना में जो दीर्घकालीन परिवर्तन आए हैं उनमें श्रमजीवी वर्ग की  आनुपातिक रूप से संख्या में कमी आई है और मध्यम वर्ग की संख्यात्मक ताकत बढ़ी है। श्रमजीवी वर्ग में भी अकुशल और अर्द्धकुशल कामगारों की संख्या घट रही है। इसलिए कई लोग मानते हैं कि मार्क्सवादी सिद्धान्त के अनुरूप श्रमजीवी वर्ग के लिए अब वैसी क्रांति के वाहक की भूमिका निभाना संभव नहीं है जिसकी पिछली सदी में कल्पना की गई थी। मार्क्स ने जैसा सोचा था वैसा वर्ग बोध श्रमजीवी वर्ग में नहीं बन पाया और भविष्य में उनका उग्र क्रांतिकारी होना अब संभव नहीं लगता।

मध्यम वर्ग देश में एक प्रमुख उपभोक्ता वर्ग भी बन गया है।यह उदारवादी नीतियों को अपनाए जाने के बाद का दौर है।नया पूंजीवाद मौजूदा राज्य के स्वरूप को बदल रहा है। राज्य अब यंत्र तकनीक आधारित वैश्विक संस्कृति का हिस्सा बन रहा है। दूसरी तरफ आर्थिक विकास का सपना देखने वाला वैश्विक मध्यम वर्ग पनप रहा है। दोनों के बीच एक गठजोड़ बन रहा है। यह वह वर्ग है जो निजीकरण की विचारधारा का हामी है और राज्य की भूमिका को कम करके आंकता है। साथ ही वह बाज़ार को विकास की धुरी के रूप में देखता है। इस वैश्विक हालात में भारत का नव माध्यम वर्ग वैश्विक मध्यम वर्ग का हिस्सा बन रहा है। यह वर्ग राज्य की कमियों की पूर्ति के रूप में निजीकरण को देखता है। कई लोगों को यह लगता है कि यह वर्ग ऐसे समाज की रचना चाहता है जिसमें मध्यम वर्ग की प्रभुता हो। वह ऐसे राजतंत्र का समर्थक होता है जो व्यवस्थित तरीके से इसी वर्ग के लिए सोचे भले ही समाज का बड़ा हिस्सा विकास की प्रक्रिया से महरूम रहता रहे।

नई आर्थिक व्यवस्था में श्रमजीवी वर्ग के लड़ाका संगठन अपना स्थान खो चुके हैं। उनका स्थान नव मध्यम वर्ग ले रहा है और लोकतन्त्र की सहाय करने वाले के रूप में अपने को स्थापित कर रहा है। इसमें मीडिया का पूरा योगदान है।  

आधुनिक पूंजीवाद के लिए यंत्र तकनीक जरूरी होती है। आज इंटरनेट के बिना नई आर्थिक सेवाएँ संभव ही नहीं है। इसमें समय और स्पेस की बाधा नहीं होती। समय और स्पेस की बाधा जब नहीं होती तो वैश्विक जन स्थानीय मामलों में शरीक हो जाते हैं। नया मध्यम वर्ग “फेसबुक पीढ़ी” हो
ला है। राजनीति का जो नया चेहरा उभरा है उसमें इसी नव मध्यम वर्ग के लोगों का प्रभुत्व बढ़ रहा है। जो लोग अब राजनीति में आ रहे हैं उन्हें , इस वर्ग के चरित्र के अनुकूल, पैसा, चमक और सत्ता लुभाती हैं। राजनीति का यह नया चेहरा लोकतन्त्र में कल्याणकारी राज्य की भूमिका की नई परिभाषा घढ़ रहा है।

नव मध्यम वर्ग की यह पीढ़ी किसी व्यक्ति की हैसियत उसकी वित्तीय सफलता से आंकती है न कि उसके जीवन मूल्यों से। मध्यम वर्ग की यह नई पीढ़ी प्रतिस्पर्धात्मक समय में अपने को पाती है। प्रतिस्पर्धात्मक काल में नम्रता सफलता की सूचक नहीं होती। उन्हीं की स्वीकार्यता होती है जो येन केन प्रकारेण अपना काम निकाल सके। उनके लिए लालच और लोभ बुरी चीजें नहीं होते।
ऐसी पीढ़ी से क्या किसी क्रांति की अपेक्षा की जा सकती है?

क्रान्ति एक संगठित लोक जुंबिश होती है। उसके लिए एक ऐसे अनुशासित ढांचे की जरूरत होती है जिसमें जवाबदेही भी हो। इसी से संगठित कार्यकर्ता समाज और जीवन के जटिल यथार्थ को सरल रूप में आम जन तक पहुचा कर क्रांति की फसल तैयार करते हैं। इसके लिए मानव संसाधन की जरूरत होती है। राजनैतिक दल की भूमिका, इसलिए, नकारी नहीं जा सकती। राजनैतिक दल जो किसी विचारधारा के आदर्श के साथ काम करे। दुर्भाग्य से आज विचारधारा किसी राजनैतिक दल की जरूरत नहीं रह गई है। राजनैतिक दल अब इसका दावा भी नहीं करते। सभी दल बेहतर राज्य प्रबंधन की ही बात करते हैं। प्रबंधन, बाज़ार आधारित अर्थव्यवस्था का शब्द है। वह लोक कल्याण का आभास देता है मगर वैसा होता नहीं। नया मध्यम वर्ग ऐसी स्थिति में ही पनपा है।

किसी विचारधारा के आदर्श पर कोई राजनैतिक सगठन तैयार होता है उसकी प्रक्रिया नीचे से आम जन के बीच से शुरू होती है। इस आम जन में किसी एक वर्ग की प्रभुता नहीं होती। तभी वह राजनैतिक प्रक्रिया सर्वग्राही होती है। मगर आज के कोलाहल में देश में जमीनी राजनैतिक प्रक्रिया की शून्यता है। नया राजनैतिक नेतृत्व नीचे से छनते हुए सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर नहीं पहुच रहा है। वह सीधे ऊपर से कूद रहा है।

अब मध्यम वर्ग का जो अभियान आज दिख रहा है वह ऐसा ही है। कई लोग इसे दल विहीन राजनीति की तैयारी मान रहे हैं। यह अभियान मानव संगठन की अपेक्षा यंत्र तकनीक को तरजीह देता है। नए मध्यम वर्ग का प्रिय बन गया ऑन लाइन मोबिलाइज़ेशन” राजनैतिक बदलाव के लिए स्थानीय समूहीकरण में निर्णायक भूमिका नहीं निभा सकता।

नया मध्यम वर्ग सुविधा की राजनीति चाहता है और वह इसलिए सिर्फ अपने लिए हो चला है क्यों कि राजनैतिक आदर्श उसके सामने नहीं है। पुराने राजनैतिक आदर्श धूमिल हो गए क्योंकि वैचारिक प्रक्रिया थम गई। इसलिए उन आदर्शों को नए जमाने के अनुरूप नया स्वरूप नहीं मिल पाया। इस शून्यता को भरने की क्षमता मध्यम वर्ग के इन प्रदर्शनों में नहीं है। इसलिए इन से बहुत आशा बांधना भी ठीक नहीं होगा। 

(यह आलेख 'प्रेसवाणी' पत्रिका में प्रकाशित हुआ)                        

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