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Showing posts from 2008

भाजपा के लिए बोझ साबित हुई वसुंधरा राजे

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राजेंद्र बोड़ा राजस्थान विधानसभा चुनावों के नतीजे अनपेक्षित नहीं हैं. किसी को यह अपेक्षा नहीं थी कि चुनाव के नतीजे किसी एक पार्टी के समर्थन या विरोध में लहर के से परिणाम देंगे. भारतीय जनता पार्टी बहुत बुरी तरह से नहीं हारी है तो कांग्रेस भी बहुत शानदार तरीके से नहीं जीत पायी है. मतदाताओं ने बहुत ही समझबूझ से अपने मताधिकार का प्रयोग किया है. उन्होंने हरेक जगह अपने हिसाब से अपने प्रतिनिधियों का चयन किया है और अपने मुद्दे ख़ुद तय किए हैं. सबसे दिलचस्प बात तो यह रही कि अनेक सीटों पर तो ख़ुद प्रत्याशी ही प्रमुख मुद्दे बन गए थे. लोकतान्त्रिक चुनावों के इतिहास में राजस्थान में यह दूसरा मौका है जब कांग्रेस सत्ता में तो आ रही है मगर 200 सदस्यों की विधानसभा में 96 सीटों पर जीत दर्ज कर पूर्ण बहुमत के जादूई आंकडे से पाँच सीटों से पीछे है. ऐसा ही 1967 के चुनावों में हुआ था जब आजादी के बाद से लगातार सत्ता में रही कांग्रेस पूर्ण बहुमत से पाँच सीटें पीछे रह गयी थी. तब संगठित विपक्ष का दावा राज्यपाल द्वारा नहीं मानने पर राजधानी जयपुर में हिंसक आन्दोलन छिड गया था और पुलिस गोलीबारी में कईं जानें गयीं थी.

राजस्थान : चुनाव 2008

राजेंद्र बोड़ा इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में राजस्थान के लोग एक बार फिर शासन की बागडोर सौपने के लिए अपने नए प्रतिनिधियों का चुनाव चार दिसम्बर को करने जा रहे हैं. नई सदी में हुए विधानसभा के पहले चुनावों में राज्य के मतदाताओं ने दो तिहाई बहुमत के बल पर अशोक गहलोत के नेतृत्व में शासन कर रही कांग्रेस को बुरी तरह नकारते हुए दिल्ली से राजस्थान भेजी गई भारतीय जनता पार्टी की वसुंधरा राजे के सर पर जीत का सेहरा बाँधा था. मरू प्रदेश में यह पहली बार हुआ जब भारतीय जनता पार्टी यहाँ अपने बूते पर पूर्ण बहुमत पाने में सफल रही. इससे पहले दो बार यह पार्टी भैरोंसिंह शेखावत के नेतृत्व में सत्ता में रही मगर तब उसे पूर्ण बहुमत नहीं था और उसे अन्य पार्टियों तथा निर्दलियों के समर्थन से राज चलाना पड़ा. पाँच वर्ष बाद भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस सत्ता में आने के लिए जनता का मत हासिल करने के वास्ते फ़िर आमने सामने हैं. सन् 2008 के विधानसभा चुनावों की सन् 2003 के चुनावों से अनोखी समानता है. पिछली बार अशोक गहलोत अपने "शानदार" और "सफल" कार्यकाल का झंडा लिए दम ख़म के साथ मैदान में थे और उन्हें जीत

हसरत जयपुरी को कैसे भुला सकते हैं

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राजेंद्र बोड़ा जिसे सारे हिंदुस्तान ने गुनगुनाया उसे राजस्थान ही क्यों ख़ुद उसके शहर जयपुर ने भुला दिया. किसी को याद भी नहीं कि आज उम्दा शायर हसरत जयपुरी की पुण्य तिथि है. अपने सरल और शोख़ गीतों से लाखों करोड़ों की जुबान पर चढ़ जाने वाले इस मकबूल शायर ने अपने शहर के नाम को अपनी पहचान बनाए रखा और गुलाबी नगरी का नाम रोशन किया मगर उनके घर वालों ने ही उन्हें भुला दिया. फ़िल्म संगीत के शौकीनों से पूछें तो कोई बताता है कि राजधानी के 'चार दरवाजा' इलाके में 15 अप्रेल 1922 को जन्मे इस आशिकाना शायर के नाम से, १९९९ में उसके निधन के बाद एक रास्ते का नामकरण जरूर हुआ था मगर अब उसे बताने वाला ही कोई नहीं मिलता . दूर गुजरात के जामनगर में जयपुर की इस प्रतिभा की याद में हर साल इस दिन उनके मुरीद शानदार संगीतमय कार्यक्रम करते हैं जिसमें गुजरात के कोने-कोने से ही नहीं देश भर से रसिक जुटते हैं, इस शायर के गीत गाते हैं और उनकी यादों में खो जाते हैं. मगर हसरत के अपने शहर और प्रदेश में कोई उनके लिए कंदील भी नहीं जलाता. हम मौके-बे-मौके बड़े जलसे करते हैं बाहर के लोगों को बुलाते है, उन्हें सिर पर चढा

सिने मायावी आई. एम. कुन्नू

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राजेंद्र बोड़ा राजस्थान की प्रतिभाओं ने हर क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई है, अपनी धाक जमाई है और कीर्तिमान कायम किए हैं. मगर हमें उनका मोल करना नहीं आता. शासन और समाज दोनों इस प्रदेश की अपनी कई विभूतियों से विरक्त नज़र आते है. लगता है उन्हें अपने ही गुणीजनों की पहचान नहीं है या जानकारी नहीं है. ऐसी ही एक शक्सियत है आई. एम. कुन्नू जो अपने फन के माहिर है मगर उनको उनके घर-प्रदेश के लोग ही नहीं जानते. टोंक के निवासी कुन्नू ने साठ सालों तक मुंबई में इतनी हिन्दी, गुजरती और राजस्थानी फिल्मों का संपादन किया है कि उनका नाम शीघ्र ही गिनीज बुक आव रेकॉर्ड्स में शामिल होने वाला है. मुंबई की फ़िल्म एडिटर्स असोसिएशन अपने इस पूर्व अध्यक्ष के काम की सारी जानकारी एकत्र कर फ़िल्म एडिटिंग का विश्व कीर्तिमान उनके नाम कराने का उद्यम कर रही है. कुन्नू विश्व के एकमात्र ऐसे फ़िल्म संपादक हैं जिन्होंने पाँच सौ से अधिक फिल्मों को अपने संपादन से संवारा. इनमें आठ विदेशी फिल्में भी शामिल है. अपनी उम्र के अन्तिम पड़ाव में कुन्नू जिन्हें फिल्मी दुनिया में सभी लोग इज्ज़त और प्यार से 'दादा' कहते हैं अब फिल्मों से

जयपुर में सिरिअल बम ब्लास्ट : कौन जिम्मेवार

-राजेंद्र बोड़ा राजधानी जयपुर में हुए बम धमाकों में पाँच दर्जन से अधिक लोगों की मौत से हर कोई सदमे में है. स्पष्ट रूप से यह आतंकी कार्यवाही है. इस दुर्दांत कार्यवाही को अंजाम देने वाले सामने नहीं है. छुप कर वार करने वाला हमेशा कायर होता है. यह कायरतापूर्ण कार्यवाही शांति भंग करने और सांप्रदायिक सदभाव बिगाड़ने और अस्थिरता पैदा करने के लिए होती है. मगर जयपुर के वासियों ने इस मुश्किल की घड़ी में जिस तरह के संयम और परिपक्वता का परिचय दिया है वह उल्लेखनीय है. घटनाओं के तुरंत बाद लोगों ने घायलों की मदद करने और अस्पतालों में रक्त देने ले लिए उमड़ कर अपने सामाजिक सरोकारों का परिचय दिया वह पूरे राजस्थान का सिर ऊँचा करता है. शहर के लोग सदमे में है दहशत में नही. यह घड़ी ऐसी है जो समझदार लोगों से संयम की अपेक्षा रखती है. मगर सभी के मन में यह सवाल जरूर है कि ऐसा क्यों हुआ ? आतंकवादियों ने जयपुर को क्यों चुना. क्यों हमारी सुरक्षा एजंसियां ऐसी काली करतूत करने वालों के इरादों का पहले से पता नहीं जान पाई ? देश पिछले दो दशक से अधिक समय से आतंकी गतिविधियों का शिकार बना हुआ है. लंबे समय से ऐसी घटनाओं का स

लील रहा है बाज़ार हमारी कला और सांस्कृतिक धरोहरों को

राजेंद्र बोड़ा राजस्थान अपनी स्थापना के ६० वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है. इस मौके पर सरकार एक बड़ा जश्न मना रही है. राजस्थान सदियों से बाहर के लोगों के लिए अजूबा रहा है. जहाँ प्रकृति जीवन के विपरीत रही हो और इंसान को जीने के लिए अपने आस पास के कठोर वातावरण से झूझना पड़ता रहा हो, वहीं खूबसूरत संस्कृति और कलाएं किस भांति पनपी उस पर पूरी दुनिया आश्चर्य करती रही है. मरू भूमि में रहने वालों ने दुनिया को सिखाया कि किस प्रकार प्रकृति से लड़ कर नही उससे सहकार करके ही मानव जी सकता है और अपनी नैसर्गिक प्रतिभा को पल्लवित कर सकता है. इसी सहकार से राजस्थान की संस्कृति में गहरे रंगों की छठा नज़र आती है और यहाँ गीत संगीत और नृत्य की अनोखी बानगियाँ मुखर और हाथ की कलाएं सजीव हो उठती हैं. यही राजस्थान की पुरातन धरोहर है जिसे यहाँ के लोगों ने बड़े जतन से सहेज रखा है. विपरीत प्राकृतिक परिस्थितियों में तप कर ही यहाँ के लोग देश के कोने कोने में गए और अपनी उद्यमशीलता के बलबूते पर सफल हुए और बड़े नाम ही नही कमाए बल्कि देश की आर्थिक उन्नति में योगदान करने वालों में प्रमुख रहे. वे बाहर जाकर सफल हुए और ऊंचे परच

R. C. Bora Passes Away

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Veteran freedom fighter and well known journalist and man of words Mr. Ram Chandra Bora is no more. He was President of Rajasthan Nav Manav Vaad Sanghthan. Affectionately, called RC by his friends, Ram Chandra Bora, who died in Jaipur on January 31, was a restless non-conformist of sort. Born on February 17, 1923 in Jodhpur , once a political and cultural centre, he took his early education in Agra at a time when appreciation for studying out of the native town was wanting. Back home he played for some time with the mores code in buzzing telegraph offices of different railway stations, now in Pakistan. The job was cut short after his arrest for blasting a bomb in the Stadium Cinema Hall in Jodhpur where British officials were enjoying a English film on Sunday morning. He was subsequently tried and jailed for eight years for waging war against British Empire. He indulged in revolutionary activities as Quit India movement stirred something deep within him and his participation in the mo

राजस्थान में सामंतवाद

रामचंद्र बोडा राजस्थान में सामंतवाद की बात की जाती रही है. कर्नल जेम्स टाड़ ने इसको विस्तार दिया है. जेम्स टाड़ ने इसकी तुलना योरूप में मध्य युग में पनपे सामंतवाद से की है. राजस्थान के कतिपय इतिहासकारों ने, जिसमें राम प्रसाद व्यास शामिल हैं, इस राज्य में पनपे सामंतवाद को योरूप में पनपे सामंतवाद से अलग माना है. राजस्थान को लेकर जितनी सामग्री जेम्स टाड़ ने एकत्रित की है उतनी सामग्री किसी अन्य ने नहीं की है. इसलिए उसे ही यहाँ वाद-विवाद का आधार बनाया गया है. कर्नल टाड़ इस सम्बन्ध में संश्कीय होते हुए भी सामंतवादी पद्धति को विस्थापित करने का प्रयास किया है. कर्नल टाड़ ने ऐसा सामंतवादी परिभाषा देकर नहीं किया है. वे योरूप के उन लेखकों में से हैं जो सामंतवाद को बिना परिभाषित किए सामंती पद्धति की बात करते है. कर्नल टाड़ ने अपनी सामंतवाद की अवधारणा में हेनरी हेलम के अलावा मंतास्क, ह्यूम तथा गिब्बन को आधार बनाया है. सामंतवाद का कच्चा चिट्ठा अपनी कालजयी पुस्तक ‘राजस्थान की वात और ख्यात’ में प्रस्तुत किया है. राजस्थान में मध्य युग में सामंतवाद की परिरेखायें बनने लगी थी. विशेषकर यहाँ के देवधर्मी पित