जयपुर में सिरिअल बम ब्लास्ट : कौन जिम्मेवार

-राजेंद्र बोड़ा
राजधानी जयपुर में हुए बम धमाकों में पाँच दर्जन से अधिक लोगों की मौत से हर कोई सदमे में है. स्पष्ट रूप से यह आतंकी कार्यवाही है. इस दुर्दांत कार्यवाही को अंजाम देने वाले सामने नहीं है. छुप कर वार करने वाला हमेशा कायर होता है. यह कायरतापूर्ण कार्यवाही शांति भंग करने और सांप्रदायिक सदभाव बिगाड़ने और अस्थिरता पैदा करने के लिए होती है. मगर जयपुर के वासियों ने इस मुश्किल की घड़ी में जिस तरह के संयम और परिपक्वता का परिचय दिया है वह उल्लेखनीय है. घटनाओं के तुरंत बाद लोगों ने घायलों की मदद करने और अस्पतालों में रक्त देने ले लिए उमड़ कर अपने सामाजिक सरोकारों का परिचय दिया वह पूरे राजस्थान का सिर ऊँचा करता है. शहर के लोग सदमे में है दहशत में नही. यह घड़ी ऐसी है जो समझदार लोगों से संयम की अपेक्षा रखती है. मगर सभी के मन में यह सवाल जरूर है कि ऐसा क्यों हुआ ? आतंकवादियों ने जयपुर को क्यों चुना. क्यों हमारी सुरक्षा एजंसियां ऐसी काली करतूत करने वालों के इरादों का पहले से पता नहीं जान पाई ?

देश पिछले दो दशक से अधिक समय से आतंकी गतिविधियों का शिकार बना हुआ है. लंबे समय से ऐसी घटनाओं का सामना करते हुए अब तक हमारी सुरक्षा एजेंसियों को इतना सक्षम तो हो जाना चाहिए था कि आतंककारी इतनी आसानी से अपना काम अंजाम नहीं दे सकें. यह हमारी सबसे बड़ी असफलता है कि हमारी सरकारों ने सुरक्षा एजेंसियों को प्रोफेशनल बनाने और उन्हें अपने तरीके से काम देने की छूट नहीं दी और उनके काम काज में हमेशा राजनैतिक हस्तक्षेप रहा. इसका नतीजा आम जनता को ही भुगतना पड़ता है. पुलिस फोर्स को नए जमाने की जरूरतों के अनुरूप बनाने के लिए दी गई विभिन्न आयोगों की सिफारिशों पर अमल करना सरकार में बैठे लोगों की प्राथमिकता में नहीं होता. इसीलिए हम पाते हैं कि बार-बार ऐसी सूचनाओं के मिलने के बाद भी कि राजस्थान के इलाके आतंकवादियों के निशाने पर है सुरक्षा एजेंसियां सुस्त पड़ी रहती है और अजमेर में दरगाह के बाहर आतंकी विस्फोट होने के बाद भी इस बात की फिक्र नहीं की जाती कि ऐसा हमला फ़िर हो सकता है. बंगलादेश के आतंकी संगठन हूजी का नाम भी कुछ दिनों पहले उजागर हो चुका था था कि वह ऐसी वारदात राजस्थान में अंजाम दे सकता है. अब जयपुर के बम हमलों के पीछे भी इसी संगठन का हाथ होने की आशंका सामने आई है. ऐसे में स्वाभाविक रूप से पूछा का सकता है कि इतनी सारी सूचनाएं होने पर भी कोई सुरक्षात्मक कदम क्यों नही उठाये गए. इसके लिए राज्य सरकार से ही जवाब माँगा जायेगा. आम जन को इस आरोप और प्रत्यारोप से कोई सरोकार नही है कि केंद्रीय एजेंसियों ने राज्य को संभावित आतंकी हमले की सूचना दी थी या नही. यह उनके जीवन की सुरक्षा का मामला है और यह हादसा किसी भी एजेंसी की गफलत से हुआ हो मगर जनता अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों से ही जवाब मांगेगी. यदि वास्तव में सरकार लोगों के जान माल की सुरक्षा के प्रति चिंतित है तो उसे अपनी चिंता अपने क्रिया- कलापों से जाहिर करनी होगी. लोग इस बात से अब पूरी तरह ऊब चुके हैं कि घटना-दुर्घटना हो जाने पर तो सरकार और उसकी एजेंसियों की जबरदस्त सक्रियता दिखे और समय गुजर जाने के बाद उनका काम-काज फ़िर पुराने ढर्रे पर लौट आए.

(दैनिक भास्कर का दिनांक 15 मई 2008 के अंक का सम्पादकीय)

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