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Showing posts from 2021

गांधी सबद निरंतर

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-राजेन्द्र बोड़ा  राजस्थान साहित्य अकादमी के इतिहास में पहली बार गांधी पर प्रामाणिक अकादमिक सामग्री का प्रकाशन हुआ है। आज जब सोशल और मुख्यधारा मीडिया में सत्य, अहिंसा और प्रेम की अलख जगाने वाले महात्मा गांधी के विरुद्ध एक व्यवस्थित और सोची समझी साजिश के तहत झूठे प्रचार का अभियान चल रहा हो तथा उस महान व्यक्ति की छाती में पिस्तौल से तीन गोलियां दाग कर हत्या कर देने वाले की महिमामंडन की कुत्सित चेष्टाएं हो रही हों तब अकादमी पुस्तकमाला श्रंखला में प्रकाशित ‘गांधी सबद निरंतर’ पुस्तक मौजूदा समय की एक जरूरी किताब बन जाती है। यह पुस्तक कुल 21 लेखों का संकलन है जिसमें गांधी दृष्टि की व्याख्याएं ही नहीं मिलती, बल्कि “उन पर उठ रहे प्रश्नों के द्वन्द्व रहित उत्तर भी … तार्किक, सुचिन्तित, और सुरुचिपूर्ण ढंग से” मिलते हैं।   पुस्तक की भूमिका में संकलन के सुधि संपादक ब्रजरतन जोशी उचित ही कहते हैं कि “गांधी आधुनिकता के पूर्वज और वर्तमान के अभिभावक है। वे निजी संरक्षकीय मुद्रा में नहीं हैं, वे प्रयोग पर अटल रहने वाले ऋषि हैं। आधुनिक सभ्यता के नाड़ी वैद्य हैं।” संकलन के लेखकों में कुछ प्रमुख नाम हैं र

बैंक ऑफ पोलमपोल

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राजेंद्र बोड़ा  अरसे बाद कोई कथा साहित्य पढ़ा। यह अनायास ही हुआ। लेखक के रूप में प्रतिष्ठित भाई वेद माथुर ने कृपा पूर्वक अपना उपन्यास ‘ बैंक ऑफ पोलमपुर ’ भेजा। वह कल ही मिला और उसे पढ़ना शुरू किया तो उसे समाप्त करके आधी रात बाद ही सोना हुआ। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह कितना दिलचस्प है। वेद माथुर पंजाब नेशनल बैंक में 40 साल का सफर तय कर महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए है और उनका कहना है कि उन्होंने इतने लंबे वर्षों के अनुभवों की पोटली इस उपन्यास में खोल दी है। इस उपन्यास में सब कुछ उस प्रकार से है जिस प्रकार से इस देश के आम नागरिक के मन में बैंकों के बारे में छवि बनी हुई है। लेखक एक सड़ी-गली व्यवस्था पर से भरम की चादर उठा देता है जिसके नीचे हम पाते हैं कि तंत्र का कोई पुर्जा ठीक से नहीं काम कर रहा है। काल्पनिक पात्रों को हटा दें तो उपन्यास बैंकों के कामकाज पर किसी अखबार का लंबा लेख हो सकता है जो कई दिनों तक क्रमशः छपे। इसलिए यह हास्य उपन्यास गंभीर है। उसमें कही गई बात हल्के-फुल्के अंदाज़ में भले ही कही गई हो मगर वह गहरी है। बैंक ऑफ पोलमपुर को “ हास्य उपन्यास ” बताया गया है मग

क्लेरिनेट नवाज़ मास्टर इब्राहिम

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राजेंद्र बोड़ा   आखिर राजस्थान के जाये क्लेरिनेट वादक मास्टर इब्राहिम पर लिखी किताब हमारे हाथ में आ ही गयी। रात उसे पूरा पढ़ भी लिया। किताब छोटी सी है , पर कहते हैं ना कि “गागर में सागर” कुछ ऐसा ही है इसमें। क्लेरिनेट के अद्भुत वादक मास्टर इब्राहिम के बारे में आपको जो जानकारी चाहिए वह इसमें उपलब्ध है।    जैसे ही पता चला कि सिनेमा के दीवाने प्रो. सुरजीत सिंह , जिनका कर्मक्षेत्र सैद्धांतिक भौतिकी रहा है , की क्लेरिनेट वादक मास्टर इब्राहिम पर लिखी किताब प्रकाशित हो कर https://store.pothi.com/.../professor-surjit-singh.../ पर उपलब्ध हो गयी हैं तो उसका तुरंत ऑर्डर किया गया और फिर इंतज़ार। और जब किताब हाथ में आई तो उस खुशी का अंदाजा कोई किताबों का रसिक ही लगा सकता है। लोक स्मृति से लुप्त मास्टर इब्राहिम ने पिछली सदी के चौथे , पांचवें और छठे दशक में लोकप्रिय फिल्मी गानों को अपने साज पर बजा कर धूम मचा रखी थी। एचएमवी ने उनके क्लेरिनेट पर बजाए फिल्मी गानों के 78 आरपीएम के सैकड़ों रिकॉर्ड जारी किए। बाद में उनके बजाए गानों के संकलन का दो सीडी का सैट भी जारी किया। रेडियो सीलोन के दैनिक प्रस

राष्ट्रीय मरु उद्यान पर किताब

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  राजेंद्र बोड़ा  राष्ट्रीय मरू उद्यान पर दो विशेषज्ञों गोबिन्द सागर भारद्वाज और असद आर रहमानी की किताब  DESERT NATIONAL PARK A  -  JEWEL IN THE VIBRANT THAR  पिछले साल प्रकाशित हुई।  पुस्तक के दोनों लेखक लंबे समय से वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण से जुड़े हुए हैं। बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के निदेशक रह चुके असद रफी रहमानी तो लगभग 40 वर्षों से राष्ट्रीय मरु उद्यान  –  खास कर गोडावण पक्षी की लुप्त हो रही प्रजाति पर अनुसंधानरत हैं। राजस्थान के लोगों ने उनसे पहली बार परिचय तब पाया जब चार दशक पहले थार रेगिस्तान में पालतू बना कर रखे गए बाज पक्षी से गोडावण का शिकार करने आए अरब के शहजादे के शौकिया करतब के बारे में इतवारी पत्रिका में तस्वीरों सहित ओम थानवी की रिपोर्टें छपी और हर्ष वर्धन ने राजधानी जयपुर में इस पक्षी को बचाने के लिए जबर्दस्त मुहिम छेड दी। इसी मुहिम में देश-विदेश के अनेक विशेषज्ञ जुड़े जिनमें रहमानी भी एक थे। इसी मुहिम का नतीजा निकला कि गोडावण राज्य पक्षी घोषित हुआ और उसकी लुप्त हो रही प्रजाति को बचाने के लिए प्रयास होने लगे जिसमे एक था राष्ट्रीय मरू उद्यान का बनना। दूसरे लेखक ग

दो गहलोतों का अंतर : होनी का खेल

राजेंद्र बोड़ा साहिर लुधियानवी ने लिखा है “कदम कदम पर होनी बैठी अपना जाल बिछाए/ इस जीवन की राह में जाने कौन कहां रह जाये”। इसे होनी नहीं तो और क्या कहेंगे कि मुख्यमंत्री के रूप में तीसरी बार राजस्थान की सरकार चला रहे अशोक गहलोत जिनके इशारे के बिना कांग्रेस हिल नहीं सकती को राजनीति में पहली बार कोई पद दिलाने वाला नेता गुमनामी के गर्त में खो जाता है। यह नेता है जनार्दन सिंह गहलोत जिसकी 1970 के दशक में कांग्रेस के संजय गांधी युग में तूती बोलती थी। मगर होनी को कुछ और मंजूर रहा। दिग्गज नेता भैरोंसिंह शेखावत को चुनाव में पराजय का कड़वा स्वाद चखा कर विधान सभा में पहुंचने का करिश्मा दिखाने वाला यह नेता राजनीति में कोई बड़ी कामयाबी नहीं हासिलकर सका। अलबत्ता राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेलों की राजनीति में रम कर उसने अपनी हैसियत जरूर बनाए रखी।  संस्मरणों के रूप में जनार्दन सिंह गहलोत ने अपना जीवन वृतांत ‘ संघर्ष से शिखर तक ’ पुस्तक में बहुत ही सीधी और सरल भाषा में प्रस्तुत किया है जो अत्यंत दिलचस्प बन पड़ा है। करीब पौने दो सौ पेजों के इस वृतांत में कांग्रेस के बीत गये स्वर्णिम युग का खट्टा-मीठा वर्