राष्ट्रीय मरु उद्यान पर किताब


 राजेंद्र बोड़ा 

राष्ट्रीय मरू उद्यान पर दो विशेषज्ञों गोबिन्द सागर भारद्वाज और असद आर रहमानी की किताब DESERT NATIONAL PARK A - JEWEL IN THE VIBRANT THAR पिछले साल प्रकाशित हुई। 

पुस्तक के दोनों लेखक लंबे समय से वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण से जुड़े हुए हैं। बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के निदेशक रह चुके असद रफी रहमानी तो लगभग 40 वर्षों से राष्ट्रीय मरु उद्यान – खास कर गोडावण पक्षी की लुप्त हो रही प्रजाति पर अनुसंधानरत हैं। राजस्थान के लोगों ने उनसे पहली बार परिचय तब पाया जब चार दशक पहले थार रेगिस्तान में पालतू बना कर रखे गए बाज पक्षी से गोडावण का शिकार करने आए अरब के शहजादे के शौकिया करतब के बारे में इतवारी पत्रिका में तस्वीरों सहित ओम थानवी की रिपोर्टें छपी और हर्ष वर्धन ने राजधानी जयपुर में इस पक्षी को बचाने के लिए जबर्दस्त मुहिम छेड दी। इसी मुहिम में देश-विदेश के अनेक विशेषज्ञ जुड़े जिनमें रहमानी भी एक थे। इसी मुहिम का नतीजा निकला कि गोडावण राज्य पक्षी घोषित हुआ और उसकी लुप्त हो रही प्रजाति को बचाने के लिए प्रयास होने लगे जिसमे एक था राष्ट्रीय मरू उद्यान का बनना। दूसरे लेखक गोबिन्द सागर भारद्वाज भारतीय वन सेवा के 1994 बैच के अधिकारी हैं जो राष्ट्रीय मरु उद्यानरणथंभौर और सरिस्का में सेवाएं दे चुके हैं। वे वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में वैज्ञानिक के पद पर भी रह चुके हैं।

दो दिग्गज विशेषज्ञों के नाम वाली कोई किताब जब बाज़ार में आती है तो उसके प्रति पाठक की अपेक्षाएं बहुत अधिक होना स्वाभाविक ही है। थार रेगिस्तान की कठिन भौगोलिक पारिस्थितिकीवहां के जीव जन्तुवहां के पशु पक्षी और वहां के मानव जीवन के बारे में अनेक वैज्ञानिक और सामाजिक अनुसंधान / अध्ययन हुए हैं और खूब लिखा गया है। ऐसे में डेज़र्ट नेशनल पार्क (राष्ट्रीय मरु उद्यान) पर प्रकाशित एक हजार रुपये के महंगे दाम वाली इस किताब से विशेषज्ञों की कोई नई दृष्टि पाने की अपेक्षा अनुचित भी नहीं है। परंतु वास्तव में सतही तरीके से विषय को बयान करने वाली यह किताब एक ‘कॉफी टेबल बुक’ है। कॉफी टेबल बुक स्वरूप की किताबें अमीरों के सजे संवरे ड्रॉइंग रूम की शोभा बढ़ाने के लिए होती है जहां कोई इंतजार करता मेहमान समय बिताने के लिए उसे उलट-पुलट ले। ऐसी किताबें देखने की अधिक होती है पढ़ने की कम। ऐसी सुदर्शन पुस्तकें अपने उत्पादन मूल्यों में जरूर ऊंची होती है। चिकने कागज पर शानदार प्रिंटिंग और बाइंडिंग वाली ये किताबें रंगीन चित्रों से भरी होती है और सामान्य किताब से आकार से बड़ी होती है। यह किताब भी ऐसी ही है।

इस किताब में राष्ट्रीय मरु उद्यान और उसकी जैव विविधता पर मोटा-मोटा परिचयात्मक विवरण ही मिलता है। बाकी पूरी पुस्तक भारतीय वन सेवा के अधिकारी भारद्वाज के खींचे चित्रों से ही भरी पड़ी है। उच्च सरकारी अधिकारी के रूप में इस राष्ट्रीय उद्यान में काम करने का लाभ उन्हें मिला कि वे अपनी सुविधा से वहां बेरोकटोक फोटोग्राफी कर सके। उनके पास फोटोग्राफी के लिए बेहतरीन कैमरे और लेंस है इसकी खबर तो उनके खींचे चित्रों से लगती है परंतु उनके खींचे चित्र उनके सामान्य शौकिया फोटोग्राफर होने के ही प्रमाण देते हैं। कई बार शौकिया फोटोग्राफर भी कमाल दिखा जाते हैं लेकिन इस किताब के चित्रों में ऐसा कोई कमाल नहीं दिखता जिस पर वाह कहने को जी करे। पुस्तक के अंतिम अध्याय में राष्ट्रीय मरु उद्यान के संरक्षण और उसके प्रबंधन पर चर्चा की गई है जो अकादमिक अधिक है तथा वे ही बातें हैं जो अमूमन अखबारों में छपती रहती हैं।  उद्यान तथा उसके वन और वन्य जीवों को बचाने के लिए लेखन में कोई तेवर भी नज़र नहीं आता। इसीलिए किताब अपने साधारण स्तर से कहीं भी ऊपर नहीं उठ पाती।  

वन और वन्य जीव संरक्षण पर काम करने वाले प्रभावशाली लोग जब कोई परियोजना हाथ में लेते हैं तो उन्हें उसे पूरा करने के लिए बड़ी वित्तीय मदद मिलने में कोई मुश्किल नहीं आती। इस महंगी किताब को निकालने में हेमचंद महिंद्रा फाउंडेशन तथा द कॉर्बेट फाउंडेशन ने मदद की है जिसे किताब के मुखपृष्ठ पर ही दर्शा दिया गया है।

“कॉफी टेबल बुक” विशिष्टजनों के लिए ही होती है जो विभिन्न मौकों पर भद्रजनों को उपहार देने के अधिक काम में आती है। यही इस किताब की भी नियति लगती है।                                       

 


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