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Showing posts from March, 2012

लोकतन्त्र शीर्षासन की स्थिति में: बजट कौन बनाता है!

राजेंद्र बोड़ा गणतन्त्र की संवैधानिक घोषणा के छह दशकों के बाद आज ऐसा लगता है जैसे लोकतन्त्र हमारे देश में शीर्षासन कर रहा हो। संविधान में राज चलाने के लिए दो संस्थाओं को अधिकार दिया गया – विधायिका और कार्यपालिका। दोनों संस्थाएं संविधान और विधि सम्मत तरीके से काम कर रहीं है या नहीं इसका फैसला करने की जिम्मेवारी न्यायपालिका में निहित की गयी। निर्वाचित विधायिका में बहुमत प्राप्त व्यक्ति सरकार का नेतृत्व करता है और सामुहिक जिम्मेवारी वाली मंत्री परिषद बना कर अगले जनादेश तक शासन की बागडोर संभालता है। संविधान की व्यवस्था यह है की निर्वाचित सरकार विधायिका के प्रति उत्तरदायी होती है और विधायिका जनता के प्रति, जिसके हाथ में सार्वभौम सत्ता है। सरकार का काम विधायिका के प्रति जवाबदेही निभाते हुए ऐसी नीतियां और कार्यक्रम बनाना होता है जिनसे आम जन की आशाओं और अपेक्षाओं के अनुरूप और संविधान के निर्देशों के अनुसार काम हो। कार्यपालिका का काम उन नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करने का होता है। इस प्रकार संविधान में स्पष्ट रूप से काम का बंटवारा किया हुआ है कि सरकार में बैठे निर्वाचित लोग नीतियां और कार्य

संगीतकार रवि: इस भरी दुनिया में कोई हमारा ना हुआ

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राजेंद्र बोड़ा हिन्दुस्तानी फिल्मों में अनगिनत संगीतकार हुए हैं जिनके सुरों के संयोजन के अपने अंदाज़ थे अपनी अलग पहचान थी। मगर गिनने बैठें तो बहुत कम ऐसे संगीतकार पाये जाएंगे जिनके गानों ने “कल्ट” गीत की ऊंचाइयों को छुआ। ऐसे कालजयी गीतों की रचना करने वालों में रवि का नाम बहुत ऊंची पायदान पर आता है। गत सात मार्च को होली के दिन काल ने उन्हें हमसे छीन लिया। मगर अपने सुरीले फिल्म संगीत से उनहों ने तो अमरत्व पा लिया था। अपने नश्वर शरीर के नहीं होने पर भी वे अपने संगीत में हमेशा हमारे साथ रहेंगे। वे अपने जमाने के वे सफलतम संगीतकार रहे। आम तौर पर किसी फिल्म के सभी गाने सुपर हिट नहीं होते। मगर वे ऐसे संगीतकार रहे जिनकी अनेकों फिल्मों के सारे के सारे गाने सुपरहिट हुए। जैसे ‘चौदहवीं का चांद’ (1960), ‘गुमराह’ (1963), ‘वक्त’ (1965), ‘दो बदन’ (1966), ‘हमराज़’ (1967) आदि। दिल्ली में तीन मार्च 1926 को जन्मे और बड़े हुए रविशंकर शर्मा गायक बनने का जुनून लेकर 1950 में सिने नगरी मुंबई पहुंचे थे। और कड़े संघर्ष के बाद उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में अपना स्थान बनाया। उनकी पहली ही फिल्म ‘वचन’ (1955) के संगी