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हिंदुस्तानी फिल्म संगीत में सरोद की गूंज

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                                    राजेंद्र बोड़ा सरोद वादन की दो प्रमुख पद्धतियां प्रचलन में हैं। एक ग़ुलाम अली खान की शैली और दूसरी अल्लाउदीन खान की शैली। दोनों के सरोद की साइज़ , उसका आकार तथा उस पर कसे तारों की संख्या भिन्न हैं। दोनों का वाद्य यंत्र बजाने तथा उसे सुर मिलाने का तरीका भी अलग-अलग है। सरोद की उत्पत्ति के बारे में अनेक बातें कही जाती है। अधिकतर ऐसा माना जाता है कि भारतीय सरोद का मूल अफगानी रबाब में है जो सरोद से आकृति में छोटा और तंबूरे जैसा होता है जिसे अफगन लोग युद्ध में जाते वक़्त बजाते जाते थे। कहते हैं बंगेश जनजाति के तीन अफगन घुड़सवार कोई सवा दो सौ साल पहले रबाब ले कर हिंदुस्तान आए थे और उत्तर भारत राजाओं के यहां सैनिकों की नौकरियां करते हुए यहीं बस गए। उनके संगीत के हुनर को यहां पहचाना गया और राजाओं के दरबारों में उनकी पहचान बनने लगी। इन तीनों के परिवारों में उनके बाद भी रबाब बजाने की परंपरा जारी रही। लेकिन जैसा कि कला और संस्कृतियों के संपर्कों से नयी-नयी चीजें बनती हैं अफगानी रबाब वाद्य पर भी भारतीय वाद्यों का प्रभाव पड़ा , खास कर वीणा का , ज

निजता खो चुका हिंदुस्तानी सिने संगीत अब स्मृतियों में नहीं दर्ज होता

राजेंद्र बोड़ा यह सच तो सभी स्वीकार करेंगे कि देश की आम जनता में 1950 और 1960 के दशक में हिन्दुस्तानी सिनेमा के लिए जो भारी क्रेज़ उभरा उसमें उस दौर के गीत-संगीत का बहुत बड़ा योगदान रहा। फिल्मी गाने - सिनेमा के परदे पर अदाकारों के लबों पर हों या रेडियो पर बजते हों - लोगों पर जादू का सा असर करते थे। हर एक को हर गाना अपना-अपना सा लगता था। जैसे वह उसी का हाल बयान कर रहा हो। हिंदुस्तानी सिनेमा संगीत की अहमियत को जानना – पहचानना हो तो उसके लिए पिछली सदी के पांचवें और छठे दशक के सिने संगीत के दौर को टटोलना पड़ेगा। लोगों के सिर चढ़ जाने वाला संगीत ऐसी फिल्मों में भी गूंजा जो ज़्यादातर “ चवन्नी छाप ” दर्शकों के लिए मानी गयी। उस दौर के गाने हमारी स्मृतियों को जगाते हैं और एक प्रकार का नो स्टेल्जिया पैदा करते हैं। उनकी स्मृतियों में लौटना बड़ा भला-भला सा , शुभ-शुभ सा लगता है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि वह देस-काल से परे ले जाने वाला संगीत था। उसमें देश के गावों और शहरों का अपनापा बोलता था। उन गानों से फ़लक का एहसास बनता था। सिने संगीत के रसिक लेखक अजातशत्रु ‘ सदियों में एक...आशा ’  में कह