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  एक बेचैन रचनाकार का न रहना  ईशमधु तलवार एक बेचैन रचनाकार थे। बेचैनी कुछ न कुछ नया करने की, अपने को साबित करने की। वे अपने को साबित खुद अपने लिए ही नहीं बल्कि बाहर की दुनिया के लिए भी करना चाहते रहे। लिखने का स्वाभाविक गुण उन्हें पत्रकारिता में ले गया जहां से समांतर रचनाशील लेखन में उनका प्रवेश कठिन नहीं रहा। वे साहित्य में वाम सोच वाले प्रगतिशील आंदोलन से जुड़े रहे और यह कहना मुश्किल है कि उन्हें खुद को इसका लाभ अधिक मिला या इस आंदोलन को उनका सहारा अधिक मिला। इस आंदोलन में उनकी पत्रकार की भूमिका उन्हें मदद करती रही। समूह में काम करते हुए भी वे अपनी अलग पहचान बनाए रख सके। 21वीं सदी में जब प्रगतिशीलता के पुराने झंडाबरदार लोग ड्रॉइंगरूम पंडित बन गए तब तलवार ने ज़मीन पर काम किया और प्रगतिशील आदर्शों की रूमानियत में डूबी नई पीढ़ी के लोग उनके साथ हो लिए। उन्होंने प्रगतिशीलता के पुराने हस्ताक्षरों को मान दिए रखा मगर उनके नांव की पतवार अपने हाथ में थामे रखी और करिश्मे कर दिखाए। इसी सामूहिकता के कारण उन्हें एक के बाद एक मंच मिलते गए। इस सच से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि जिस मंच को उ...