एक बेचैन रचनाकार का न रहना
ईशमधु तलवार एक बेचैन रचनाकार थे। बेचैनी कुछ न कुछ नया करने की, अपने को साबित करने की। वे अपने को साबित खुद अपने लिए ही नहीं बल्कि बाहर की दुनिया के लिए भी करना चाहते रहे। लिखने का स्वाभाविक गुण उन्हें पत्रकारिता में ले गया जहां से समांतर रचनाशील लेखन में उनका प्रवेश कठिन नहीं रहा। वे साहित्य में वाम सोच वाले प्रगतिशील आंदोलन से जुड़े रहे और यह कहना मुश्किल है कि उन्हें खुद को इसका लाभ अधिक मिला या इस आंदोलन को उनका सहारा अधिक मिला। इस आंदोलन में उनकी पत्रकार की भूमिका उन्हें मदद करती रही। समूह में काम करते हुए भी वे अपनी अलग पहचान बनाए रख सके।
21वीं सदी में जब प्रगतिशीलता के पुराने झंडाबरदार लोग
ड्रॉइंगरूम पंडित बन गए तब तलवार ने ज़मीन पर काम किया और प्रगतिशील आदर्शों की
रूमानियत में डूबी नई पीढ़ी के लोग उनके साथ हो लिए। उन्होंने प्रगतिशीलता के
पुराने हस्ताक्षरों को मान दिए रखा मगर उनके नांव की पतवार अपने हाथ में थामे रखी और
करिश्मे कर दिखाए। इसी सामूहिकता के कारण उन्हें एक के बाद एक मंच मिलते गए। इस सच
से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि जिस मंच को उन्होंने साधा उसे अपनी रचनात्मक और
संगठनात्मक क्षमता से उर्वर किया।
आम तौर पर संगठनात्मक काम में लगने से लेखनी की
नजरंदाजी होने लगती है, किन्तु वे संगठनों के काम की अति व्यस्तताओं के बावजूद
विभिन्न विधाओं में अपना लेखन जारी रख सके।
तलवार एक सहज और सामान्य इन्सान थे जिन्होंने अपनी
मेहनत से ऊंचाइयों को छुआ। वे किसी से देर तक नहीं लड़ सकते थे। भले ही एक सामान्य
इन्सान की भांति वे खीज जाते या अपनी नाराजगी नहीं छुपा पाते। किन्तु उनमें यह
प्रतिभा भी थी कि कैसे शीघ्र ही सामान्य हो जाना। वे सौभाग्यशाली थे कि उनके साथ
खड़े प्रगतिशील खेमे में उनके लिए शाब्दिक लड़ाई लड़ने वालों की कमी नहीं थी।
किसी समय ‘हार्ड न्यूज़’ कही जाने वाली पत्रकारिता में
आगे बढ़े मगर असहज रहे। उनका असली मैदान था ‘सॉफ्ट न्यूज़’। अमित शर्मा ने अपनी
पुस्तक ‘लफ़्जों की गवाही’ में लिखा है कि उनके मन में मलाल है कि “मुझे न्यूज़ में नहीं, बल्कि फीचर में होना चाहिए था। मेरी दिली इच्छा थी
कि मैं किसी साहित्यिक मैगज़ीन में काम करूं”। बाद में उन्हें असली ख्याति इसी फीचर
लेखन से मिली।
उन्होंने पेशेवर यायावरी भी खूब की। अलवर के ‘अरानाद’
तथा ‘अरुण प्रभा’ से ‘राजस्थान पत्रिका’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘जनसत्ता’, ‘दैनिक
नवज्योति’, ‘महका भारत’, ‘मॉर्निंग प्लस’, ‘ईवनिंग प्लस’, और ‘ईटीवी’ में भटकते
हुए जब वे स्वतंत्र काम करने लगे तब ही पूरे निखरे। मगर वे असमय चले गए।
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