जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल

विश्व पटल पर गुलाबी नगरी को मिली नई पहचान 



राजेंद्र बोड़ा 

जयपुर का फिल्मों से पुराना रिश्ता रहा है। पिछली सदी में जब पर्दे पर चलती फिरती तस्वीरों की नई यांत्रिक कला हिंदुस्तान में पहुंची तभी से फिल्में बनाने वालों की यहां आवाजाही बन गई। यहां फिल्मांकन करने देश और विदेश दोनों जगहों से सिनेकार लगातार आते रहे हैं। गुलाबी शहर उनके लिए सदैव आकर्षण का केंद्र रहा। मगर इस शहर की पहचान हमेशा ऐतिहासिक आमेर का क़िला और शहर के मध्य स्थित हवा महल ही बने रहे। यहां के जवाहरात उद्योग ने भी इस शहर को पहचान अपनी दी।

वर्ष 1925 में बनी फिल्म लाइट ऑफ एशिया का एक दृश्य

फिल्मों को जयपुर में शुरू से ही प्रोत्साहन मिलता रहा है। वर्ष 1925 में भारत और जर्मनी के तकनीकी सहयोग से बनी भगवान बुद्ध के जीवन पर आधारित फिल्म लाइट ऑफ एशिया (प्रेम संन्यास) एक मूक फिल्म थी जिसकी अधिकांश शूटिंग जयपुर में हुई। तब सवाक फिल्मों का चलन शुरू नहीं हुआ था। तत्कालीन जयपुर महाराजा ने इस फिल्म की यूनिट को फिल्मांकन के लिए पूरी सुविधाएं दीं जिसके लिए फिल्म के क्रेडिट में जयपुर के महाराजा को धन्यवाद ज्ञापित किया गया थाहिंदुस्तानी सिनेमा की सार्वकालिक क्लासिकमुले आजम के अलावा लोकप्रिय संगीत प्रधान फिल्म राजकुमार में आमेर और उसके आसपास के दृश्य आसानी से पहचाने जा सकते हैं तो दुर्गेश नंदिनीके दृश्यों में जयपुर के जवाहरलाल नेहरू मार्ग पर स्थित केसरगढ़, जहां अब राजस्थान पत्रिका का मुख्यालय है, को भी दर्शक आसानी से पहचान सकते हैं। विदेशी फ़िल्मकार भी यहां फिल्में बनाने आते रहे हैं।

ज़माना बदला, दुनिया बदली और शहर का रंग-ढंग भी बदला। नए दौर में पुरातन के प्रति लगाव रखते हुए भी सफलता की नई कहानियां लिखी जाने लगी। इक्कीसवीं सदी का पहला दशक इस मायने में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा जब ऐसे जतन हुए जिनसे शहर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान मिली। इसमें एक महत्वपूर्ण जतन रहा जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (जिफ) के आयोजन का जिसके जरिये गुलाबी नगरी ने अब विश्व सिनेमा के नक्शे पर प्रमुखता से अपना स्थान बनाया है।जिफ न केवल स्थानीय दर्शकों को विश्व सिनेमा से रूबरू करवाता है बल्कि विश्व को जयपुर से परिचित कराता है।

दुनिया में अनेकों स्थान ऐसे हैं जो सिर्फ अपने यहां होने वाले फिल्म समारोहों के लिए जाने जाते हैं। जैसेकान फिल्म समारोहभारत में गोवा को लें जिसकी नई पहचान वहां प्रति वर्ष होने वाला अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह बनने लगा है। 
  
जयपुर को विश्व में नई पहचान देने वाला जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल की शुरुआत 2009 में राजस्थान विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. करने के बाद फिल्म निर्माण में पोस्ट ग्रेज्युएट डिप्लोमा लेकर आए हनु रोज ने की। यह शुरुआत उत्साहवर्धक थी। वर्ष 2009 की 31 जनवरी से 2 फरवरी तक चले पहले जयपुर इन्टरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सात देशों की 148 फिल्मों का प्रदर्शन हुआ।

जयपुर के आधुनिक इतिहास में यह एक निर्णायक मोड साबित हुआ। पहले समारोह ने ही दुनिया के सिने जगत को यह संदेश दे दिया कि विश्व सिनेमा का एक नया गंतव्य करवट ले रहा है। इसका उत्साहवर्धक नतीजा वर्ष 2010 में साफ नज़र आया जब दूसरे समारोह के लिए 41 देशों से 350 फिल्मों की प्रविष्टियां मिली। इसके बाद बस आगे ही आगे बढने की कहानी है। विश्व में होने वाले फिल्म समारोहों में तेजी से उभरते हुए जिफ ने अपने लगातार नौ सालाना आयोजनों से जयपुर को विश्व सिनेमा की राजधानी के रूप में स्थापित स्थापित कर दिया है।

इस साल जिफ-2017 फिल्म समारोह का नौ वां अंक था जिसमें 104 देशों से 2176 फिल्मों की प्रविष्टियां प्राप्त हुई और अंतराष्ट्रीय चयनकर्ताओं द्वारा चुनी गई 80 देशों की 384 फिल्में प्रदर्शित की गईं। यह एक कीर्तिमान है।

फिल्में बनाने की सुविधाओं युक्त करीब 80 देशों को मिला कर लगभग सौ देशों में फिल्में बनती हैं। जहां फिल्में बनाने की सुविधाएं नहीं है वहां के लोग अन्य देशो से तकनीकी और अन्य सुविधाएं लेकर फिल्में बनाते हैं। जयपुर नगर गर्व कर सकता है कि इस शहर में होने वाले इस समारोह में इन सभी देशों से फिल्में आती हैं। यह बात भी गर्व से कही जा सकती है कि इतनी तेजी से बढ़ कर अपनी और गुलाबी नगर जयपुर की पहचान बनाने वाले जिफ जैसी कोई और मिसाल दुनिया में नहीं मिलती।

जिफ की एक दशक की यात्रा में हिन्दी फिल्म जगत के चमकते सितारों ने भरपूर शिरकत की है तो फिल्मों की अन्य विधाओं से जुड़े अन्य लोगों की भागीदारी भी इसमें रही है। इस साल जिफ ने फिल्म समारोह की ओपनिंग दक्षिण भारत की फिल्म इंडस्ट्री को समर्पित कर देश की सांस्कृतिक एकता को प्रदर्शित करने का विनम्र प्रयास किया। इसी के चलते भारतीय फिल्म जगत के सबसे बड़े संस्थान प्रसाद प्रोडक्शन के प्रमुख रमेश प्रसाद को लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार देकर जिफ ने दक्षिण भारत के फिल्म उद्योग को ही नहीं सम्मानित किया बल्कि इस संस्थान के संस्थापक एल वी प्रसाद को भी अपनी श्रद्धांजलि दी जो हिंदुस्तानी फिल्मों के नींव के पत्थरों में से एक थे। रमेश प्रसाद इन्हीं एल वी प्रसाद के बेटे हैं और अपने पिता की कला विरासत को संभाल रहे हैं।
   
रमेश प्रसाद को लाइफ टाइम आचीवमेंट पुरस्कार साथ है दक्षिण के जाने माने फिल्म निर्माता निर्देशक हरिहरन 
जयपुर इतिहास में कभी कारोबारी मंडी के रूप में भी अपनी पहचान रख चुका है। जिफ ने नए युग में इस शहर में फिल्म निर्माण का बाज़ार विकसित करने की भूमिका निबाही है। जिफ ने दुनिया भर के फ़िल्मकारों को एक नया मंच दिया है जहां वे आपस में मिलते हैं और देश की सीमाओं को लांघ कर साझे में फिल्में बनाने के अवसर तलाशते हैं। समारोह के दौरान होने वालीको-प्रोडक्शन मीटकी जयपुर को विश्व सिनेमा की राजधानी के रूप में प्रतिष्ठापित करने में बड़ी भूमिका रही है।

यंत्र तकनीक वाली फिल्म कला की दुनिया में जयपुर की यह नई पहचान राजस्थान को देश का अग्रणी श्रेणी का राज्य बनाने के शासन के प्रयासों में भी एक सकारात्मक योगदान है।

(यह आलेख राजस्थान सरकार के सूचना और जनसंपर्क विभाग की पत्रिकासूजसके 20 जनवरी के अंक में छपा)   

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