कौन लौटाएगा कांग्रेस का खोया वैभव

राजेंद्र बोड़ा

अशोक गहलोत और सचिन पायलट
सचिन पायलट पर डोरे डाल रहे हैं कि वे पाला बदल कर अपने गले में भगवा दुपट्टा डाल लें। इसके लिए उनके लिए केंद्र में नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में एक कुर्सी लगाई जा सकती है। ऐसी खबर राजस्थान के एक पुराने प्रतिष्ठित समाचार पत्र राष्ट्रदूत में शनिवार 15 अप्रेल, 2017 को छपी जिसके बाद, जैसा कि होताया है, अटकलों का दौर चल पड़ा।

यह खबर चंडूखाने की गप्प है या सचिन को राजनैतिक रूप से परेशान करने और उन्हें अस्थिर करने के लिएप्लांटकी गई है हम नहीं कह सकते।

अशोक गहलोत के नेतृत्व में पांच साल सरकार चलने के बाद कांग्रेस की जो दुर्गति विधान सभा चुनावों में हुई उसके बाद जो हालात बने उसमें पायल को प्रदेश का खेवैया बनाया गया और आशा की गई कि पार्टी की सूख गई खेती फिर से हरी हो पाएगी। मगर यह आशा पूरी नहीं हो सकी है। इसका उदाहरण है विधानसभा की धौलपुर सीट के लिए हुआ उप चुनाव जिसमें भाजपा ने चौकाने वाले बहुमत से जीत हासिल की और कांग्रेस की कोई नई कोंपल नहीं फूट सकी

ऐसी खबरें भी उड़ती रहती हैं कि राजस्थान में पायलट को असफल साबित करने और उन्हें अस्थिर करने के लिए अशोक गहलोत के समर्थक बड़े व्यवस्थित तरीके से चुपचाप काम करते रहते हैं। गहलोत का अपनी मासूम छवि बनाए रखने का मीडिया प्रबंधन इस विधा के छात्रों के लिए सीखने योग्य है।

बहुत से लोग यह भी मानते हैं कि राजस्थान में यदि कोई कांग्रेस को बचा सकता है तो वह है अशोक गहलोत जो जमीनी स्तर से अपने बूते पर राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते हुए मुख्यमंत्री के रूप में दो कार्यकाल बिता चुके हैं। दूसरी तरफ सचिन पायलट अपने पिता और माता की विरासत से राजनीति में आए हैं। उनके पिता राजेश पायलट को भी इंदिरा गांधी ने अपने हाथों से उठा कर राजनीति में ऊंची पायदान पर सीधे प्रतिष्ठापित किया था। हालांकि राजेश पायलट का व्यक्तित्व और व्यवहार करिश्माई था।

थपेड़े खाकर जमीनी स्तर से पनपने वाले राजनेताओं की अब तो राजस्थान में ही क्यों देश भर में कमी बनी हुई है। इसीलिए मरू प्रदेश में अशोक गहलोत धरती में बीज के रोपे जाने, उसके सभी मौसमों को सहते हुए पनपने और उसके पेड़ बनने की प्रक्रिया से गुज़र कर अपने आज के मुकाम पर पहुंचे हैं। इसीलिए बहुतों को उनमें ही यह संभावना दीखती है कि वे कांग्रेस को उसकी खोई हुई ज़मीन वापस दिला सके।

अगले चुनावों से पहले कांग्रेस को फिर से लोगों के साथ जोड़ने के लिए हालांकि अशोक गहलोत सबसे उपयुक्त व्यक्ति हो सकते हैं परंतु इसके लिए उन्हें खुद भी तैयारी करनी होगी। उनकी यह तैयारी कांग्रेस की जड़ों को जानने की और फिर उस पहचान से लोगों का फिर रिश्ता बनाने की होगी तभी वे कांग्रेस का खोया वैभव वापस दिलाने में सफल हो सकेंगे। यदि यह राजनैतिक यात्रा सिर्फ सत्ता पाने के लिए की गई तो तो शायद वे कहीं नहीं पहुंचें।
गहलोत को यह याद रखना होगा कि कांग्रेस में उनका उद्भव और विकास जिस दौर में हुआ वह दौर इस पार्टी की विचारधारा और आदर्शवाद के क्षरण का काल था। इन्दिरा गांधी के नेतृत्व में लोकतान्त्रिक मूल्यों की जगह व्यक्ति आधारित राजनीति की जमीन तैयार हो रही थी। वह संजय गांधी का भी दौर था जिसमें राजनैतिक कैडर की जगह भीड़ को तरजीह दी जाने लगी थी। हालांकि संजय गांधी को यह भरोसा था कि अंततोगत्वा वे भीड़ को कैडर बना लेने में सफल होंगे।

गहलोत को राजनीति में किसी ने तैयार नहीं किया, वे स्वयं-निर्मित नेता हैं। इसीलिए शायद वे इतनी लंबी पारी में किसी और को भी तैयार नहीं कर पाये।
कांग्रेस की आंतरिक राजनीति को उन्हों ने साधा है। इस पर उनकी विलक्षण पकड़ है जिससे वे पार्टी में अपने लिए मुश्किलें पैदा करने की कोशिशें करने वालों को पटखनी देते हुए हमेशा अपराजेय बने रहते हैं।

सचिन को भले ही अभी अपने को राजनीति में साबित करना है मगर परिस्थितियों ने कांग्रेस की राजनीति में उन्हें गहलोत का विकल्प बनने के हालात में जरूर ला खड़ा किया है।

अब देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस की आंतरिक राजनीति किस करवट बैठती है। 

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