बेमिसाल गायन - जीवन











-राजेंद्र बोड़ा

जुथिका रॉय उन महान कलाकारों में से हैं जो न केवल अपनी कला की बुलंदियों पर पहुंचे बल्कि अपने जीवन को भी ऐसे जिया जिससे प्रेरणा ली जा सके. अपनी मीठी आवाज के साथ सरल और सौम्य व्यक्तित्व वाली गायिका जुथिका रॉय ने 20 अप्रेल को अपने जीवन के 90 बसंत पूरे कर 91 वें वर्ष में प्रवेश किया. उन्होंने अपना जन्म दिन जयपुर में सुधि संगीत रसिकों के बीच मनाया. जयपुर के एक अनौपचारिक समूह 'सुरयात्रा' ने उन्हें विशेष तौर पर जयपुर आमंत्रित किया था. बीते युग के बहुत कम संगीत सितारे आज हमारे बीच हैं. मगर नई विज्ञापनी चकाचौंध में वे बिसराए हुए ही रहते है. 'सुरयात्रा' समूह बीते युग के ऐसे कलाकारों को याद करता है, उन्हें बुलाता है और स्नेह से भावभीना सम्मान करता है. भावना यही रहती है कि उस कलाकार को अपने जीवन की सांध्य बेला में लगे कि वे भुला नहीं दिए गए हैं. आज भी उनके चाहने वाले उन्हें इज्जत बख्शने वाले मौजूद हैं. कलाकार को मिली यह ख़ुशी ही सुरयात्रा के हमराहियों की थाती होती है.

जुथिका रॉय तीन दिन जयपुर में रही. रविवार की शाम उनका भव्य सम्मान समारोह हुआ. बीते युग की इस गायिका की यात्रा और उनके सम्मान समारोह के लिए 'सुरयात्रा' ने किसी प्रायोजक की मदद नहीं ली थी. 20 तारीख को सुरयात्रियों ने उनका जन्म दिन मना कर उन्हें कोलकाता के लिए विदाई दी.

वे जब सात बरस की थीं तभी से उन्होंने गाना शुरू कर दिया था और मात्र 13 बरस की उम्र में उन्हें आकाशवाणी के कोलकोता केंद्र से गाने का मौका मिला. 1933 में क़ाज़ी नजरुल इस्लाम के निर्देशन में उनकी दो गीतों की रिकार्ड बनीं, परन्तु वह टेस्ट रिकार्ड से आगे नहीं बढ़ पायी. 1934 में ग्रामोफोन कंपनी में ट्रेनर के पद पर आये कमल दासगुप्ता ने रिजेक्ट की हुई टेस्ट रिकार्ड सुनी और नए सिरे से उन्हें रिकार्ड करवाया और जुथिका रॉय पहली बार रिकार्ड के जरिये लोगों के सामने आयीं. जुथिका रॉय ने सुरयात्रा की बैठक और सम्मान समारोह में अपने गायन जीवन के कई आत्मीय प्रसंगों को याद किया. जुथिका जी ने अधिकतर भजन ही गाये. उनके गाये मीरा के भजन पुरानी पीढ़ी के लोग आज भी घंटो सुनते हैं. महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरु, सरोजिनी नायडू और मोरारजी देसाई जैसे नेता भी उन लाखों लोगों में शामिल थे जो जुथिका रॉय को सुनना पसंद करते थे. एक बार वे जब हैदराबाद में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने गयी हुई थी कि सुबह सुबह उन्हें बताया गया कि सरोजिनी नायडू उन्हें सुनना चाहती हैं और वे उस गेस्ट हाउस में आ रहीं है जहां वे ठहरी हुई हैं. छोटी उम्र की जुथिका के लिए यह यादगार क्षण था.

नायडू ने जुथिका से भजन सुने और खूब आशीर्वाद दिया. उन्होंने बताया की बापू भी जुथिका के गायन को बहुत पसंद करते हैं और पूना जेल में जब वे थे तब वहां उसके भजनों के ग्रामोफोन रिकार्ड रोज सुनते थे. नायडू ने जुथिका से पूछा की क्या वह गाँधी जी से मिली है? फिर कहने लगी तुम गाँधी जी से जरूर मिलना. मगर जुथिका जी से गांधी जी से मिलना बहुत बाद में हुआ जब वे कलकत्ते में सांप्रदायिक सदभाव स्थापित करने आये और बेलियाघाटा में ठहरे थे. जुथिका, उनके पिता, माँ और चाचा गांधी के दर्शन करने सुबह सुबह वहां पहुंचे जहाँ गांधीजी ठहरे हुए थे. उन्होंने अखबार में पढ़ा की गांधी जी बहुत व्यस्त है और किसी से नहीं मिलेंगे. सुबह छः बजे बापू टहलने जाते है. जुथिका के परिवार ने सोचा सुबह जब बापू टहलने निकलेंगे तब उनके दर्शन कर लेंगे. मगर वे जब वहां पहुंचे तो पता चला की गांधी जी सैर करके वापस लौट भी चुके है. बाहर गांधी के दर्शनों के लिए बड़ी भीड़ थी और बारिश हो रही थी. जब उन्होंने चौकीदार से कहा कि उन्हें गांधी जी से मिलना है तो उसने यह कह कर उन्हें अन्दर नहीं जाने दिया कि उसे आदेश हैं कि किसी को भी अन्दर नहीं जाने दूं. जब चौकीदार टस से मस नहीं हुआ तो जुथिका के चाचा जो थोड़े तेज तर्रार किस्म के इंसान थे चौकीदार से अधिकारपूर्ण बोले : “गांधी जी से जाकर बोलो कि जुथिका आयी है”. चौकीदार भभकी में आ गया और अन्दर चला गया. थोड़ी देर में वे क्या देखते हैं कि आभा और मनु तथा कुछ और लोग छाते लिए हुए बाहर आ रहे है. वे आये और जुथिका के परिवार को अन्दर ले गए. अन्दर उन्हें तौलिया दिया गया कि वे भीगे हुए शरीर को पोंछ लें. गांधी जी दूसरे कमरे में थे. उनका उस दिन मौन व्रत था. किसी ने आ कर कहा कि जुथिका और उनकी माँ अन्दर जाकर गांधी जी से मिल सकते है. लगभग 64 साल पुरानी यह घटना जुथिका जी के स्मृति पटल पर आज भी ताजा है. "मैंने अन्दर प्रवेश किया तो देखा कि बापू केवल धोती पहने नंगे बदन बैठे हैं और एक कागज़ पर कुछ लिख रहे है. कागज उनके घुटने पर रखा है जिसके नीचे आधार के लिए कुछ नहीं है. बापू ने सर उठा कर मुस्कराते हुए हमारी और देखा. उनके चेहरे पर जो आत्मीयता थी आभा थी वह आज भी मुझे याद है. मुझे नहीं लगा कि में उनसे पहली बार मिल रही हूँ. मुझे लगा जैसे वे तो मेरे ही कोई अपने हैं. मैंने उन्हें जाकर प्रणाम किया और उन्होंने मेरे सिर पर हाथ हाथ रख कर आशीर्वाद दिया. उन्होंने कागज़ पर लिख कर मेरे बारे में पूछा. मनु उनके लिखे को पढ़ कर सुनाती थी. मनु ने कहा गांधी जी साथ के कमरे में अब स्नान करने जा रहे है. आप यहीं बैठे कुछ भजन गाईये. गाँधी जी नहाते रहे और में बिना किसी संगतकार के मीरा के भजन गाती रही. नेने कोई पांच छः भजन उस समय गाये होंगे. बाद में गांधी जी ने फिर लिख कर दिया कि उनकी प्रार्थना सभा में मैं चालू और वहां भजन गाऊँ. बाद में गांधी जी के साथ की कार में मैं बापू के प्रार्थना स्थल गयी जहां गाँधी जी की सांप्रदायिक सदभाव बनाए रखने की अपील के बाद मेरा गान हुआ और उसके साथ ही सभा समाप्त हुई."

प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु भी जुथिका के गायन को पसंद करते थे. उन्होंने एक बार जुथिका रॉय को अपने सरकारी आवास पर बुलाया और उनसे भजन और गीत सुने. " नेहरूजी चप्पल खोल कर जमीन पर बैठे. उन्होंने अपनी टोपी उतार के रख दी और दो घंटे तक मेरा गान सुनते रहे.

सन 1920 में हावड़ा जिले के आमता गाँव में जन्मी जुथिका रॉय ने 356 से अधिक गीत गाये. इनमें से 214 हिंदी में, जिनमें अधिकतर भजन थे, 133 गीत बांग्ला में और दो तमिल में गाये. हिंदी के भक्ति गीतों में कुछ इस्लामिक नातें भी हैं तो कुछ होली और वर्षा गीत हैं. उन्होंने दो हिंदी फिल्मों – ‘रत्नदीप’ और ‘ललकार’ - में चार गीत गाये. जुथिका रॉय ने बावजूद बड़े आफर के फिल्मों में गीत नहीं गाये. ये दो अपवाद इसलिए हुए कि 'रत्नदीप' के लिए वे जाने माने निर्देशक देवकी बोस को ना नहीं कर सकी जिन्होंने कहा कि उन पर कोइन बंदिश नहीं होगी और वे अपनी पसंद से गायेंगी. दूसरी फिल्म 'ललकार' के निर्माता गीतकार पंडित मधुर थे. जुथिका रॉय ने मीरां के के अलावा जो गीत गाये वे अधिकतर पंडित मधुर के ही लिखे हुए थे इसलिए वह उन्हें भी इनकार नहीं कर सकी.

जुथिका रॉय का परिवार रामकृष्ण मिशन से जुड़ा हुआ था. जुथिका और उनकी दो अन्य बहनों ने 12 बरस का ब्रह्मचर्य का व्रत लिया. बहनों ने 12 वर्ष व्रत निभा कर बाद में शादी कर ली मगर जुथिका रॉय ने यह व्रत आजीवन के लिए अपना लिया. उनके गानों को संगीतबद्ध अधिकतर बंगाल के प्रमुख संगीतकार कमल दासगुप्ता ने किया. वे जुथिका जी से विवाह करना चाहते थे मगर इसी व्रत के कारण यह विवाह नहीं हो सका.

सन 1939 में उनके गाये मीरां और कबीर के भजनों ने जो जबरदस्त लोकप्रियता हासिल की वह आज भी बरकरार है. इसी साल उन्होंने पहली बार सार्वजनिक प्रदर्शन मुंबई में दिया और तब से उन्होंने कभी पीछे मुड कर नहीं देखा. 1972 में उन्हें पद्मश्री का अलंकरण दिया गया. सन 2002 में जुथिका रॉय की बांग्ला में आत्मकथा "आज ओ मोने पड़े" का प्रकाशन हुआ. इसी का गुजराती संस्करण "चुपके चुपके बोल मैना' का प्रकाशन 2008 में हुआ.

(यह आलेख जनसत्ता के 2 मई के रविवारी परिशिष्ट में छपा)

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