गीत-संगीत में ढल कर आम जन तक पंहुचे गांधी


राजेंद्र बोड़ा

महात्मा गांधी का संगीत से क्या वास्ता हो सकता है। सतही तौर पर देखने पर गांधीजी का जीवन बड़ा ही नीरस और उबाऊ लग सकता है। एक राजनेता और समाज सुधारक की महात्मा गांधी की छवि में आम तौर पर कला या संगीत के लिए कोई स्थान नहीं दिखता। संगीत और अन्य कलाओं के लिए उनके पास वक्त ही कहाँ था। देश की आजादी और विभिन्न समुदायों खास कर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच भाईचारे को मजबूत बनाने के लिए प्रयासों में ही उनका सारा जीवन बीत गया। खुद उनके जीवनकाल में लोगों को लगता था कि वे जिस प्रकार का जीवन व्यतीत करते हैं और जिस सादे जीवन की अपेक्षा वे लोगों से करते हैं उसमें संगीत जैसी कलाओं का कोई स्थान नहीं हो सकता। ख्यातनाम गायक दिलीप ने एक बार गांधीजी से संगीत की चर्चा छेड़ ही दी। दिलीप बंगाल के जाने माने नाट्यकार द्विजेंद्रलाल राय के बेटे थे और गायन के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति पा चुके थे। संगीत की बात छेडते हुए दिलीप ने कहा महात्मा जी मुझे लगता है हमारे स्कूलों और कालेजों में हमारे खूबसूरत संगीत की उपेक्षा होती है। जवाब में गांधी जी बोले “यह दुर्भाग्यजनक है। मैंने तो हमेशा ही यह कहा है”।

दिलीप ने जब महात्मा जी से कहा कि वे तो इस भ्रांति में थे कि आपके जीवन में कला का कोई स्थान नहीं है। मैं तो यह सोचता था कि आप जैसा संत तो संगीत का विरोधी होगा। गांधी जी चौंक कर बोले “संगीत के खिलाफ और मैं?” फिर बापू कहने लगे “मेरे बारे में लोग ऐसी ऐसी बातें फैला देते हैं कि मेरे लिए उनका प्रतिकार करना भी असंभव हो जाता है। नतीजा यह होता है कि जब मैं कहता हूँ कि मैं खुद एक कलाकार हूँ तो लोग मुस्करा देते हैं”। गांधी जी ने आगे और खुलासा किया कि “मैं तो मानता हूँ कि धर्म का विकास बिना संगीत के हो ही नहीं सकता था”।

हम जानते हैं कि गांधी की प्रार्थना सभाओं में सभी धर्मों के भजन गाये जाते थे। यह भजन गायन संगीत नहीं तो और क्या था। महान गायिका जुथिका राय ने कुछ दिनो पूर्व जयपुर में गांधीजी का एक प्रसंग सुनाया था। गांधी जी कलकत्ता आए तब वे पहली बार उनके “दर्शन करने” गई थी। तब अत्यंत व्यस्त होने के बावजूद गांधी जी ने जुथीका राय से भजन सुने थे। जब जुथीका रॉय पहुँची तब गांधीजी नहाने के लिए जा रहे थे। उन्होंने जुथीका से कहा मैं पास के कमरे में नहाता हूँ तुम यहाँ बैठ कर गाओ। और जब तक गांधी जी नहा कर बाहर नहीं आ गए किशोरी जुथीका एक के बाद एक भजन गाती रही। गांधी जी बहुत प्रसन्न हुए और गायिका को खूब आशीर्वाद दिया। फिर बोले तुम्हें शाम को प्रार्थना सभा में गाना है। जुथीका को को प्रार्थना स्थल तक ले जाने के लिए एक मोटर कार आई और कलकत्ता में हजारों लोगों के समक्ष जुथीका के भजन के साथ गांधी जी की सभा का समापन हुआ।

कहा जाता है कि एक बार नारद जी ने भगवान विष्णु से पूछा कि आप कहाँ निवास करते हैं ?
भगवान ने कहा :

नाहं वसामि वैकुंठे योगिनां हृदये न च,
मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद ।


अर्थात न मैं वैकुंठ में वास करता हूँ और न योगियों के हृदय में।
हे नारद जहाँ मेरे भक्तगण मेरा गान करते हैं मैं वहाँ वास करता हूँ।

गांधीजी की प्रार्थना सभाओं में सभी धर्मों के गीतों का गान होता था। इसीलिए वहाँ भगवान विष्णु का वास होता था। इसीलिए वहाँ से प्रेम और भाईचारे की गंगा प्रवाहित होती थी।

गांधीजी का भारतीय जन जीवन पर गहरे तक प्रभाव रहा। वे हर परिवार के बुजुर्ग या मुखिया की तरह हो गए। इसीलिए कवि ने कहा “चल पड़े जिधर दो डग मग में/ चल पड़े कोटि पग उसी ओर”।

गांधी की गूँज कवियों की कविताओं में और आम जन के लोक गीतों में जाम कर उभरी। गांधी ने सूट कातने का नारा दिया तो हर तरफ यह गीत गूँज उठा “कतली कातो मेरे भाई इसको गांधी ने अपनाई”।

अहिंसा के पुजारी के लिए देश के बच्चे बच्चे ने गया “दे दी हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढाल/ साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।“

अपनी मृत्यु तक गांधीजी के सचिवे रहे महादेव देसाई के बेटे नारायण देसाई तो देश के कोने कोने में गांधी कथा का वाचन करते फिरते हैं और हर जगह उनके गान को सुनने के लिए लोग लालायित रहते हैं।

गांधी के महाप्रयाण के बाद राजेंद्र क़ृष्ण की लिखी गांधी कथा जिसे हुस्नलाल भगतराम ने सुरों में बांधा था घर-घर गूँजी। “सुनो – सुनो ए दुनिया वालों बापू की ये अमर कहानी” को कौन भूल सकता है जिसे मोहम्मद रफी ने बड़े मनोयोग से गाया था।

जोधपुर में विवाह के मौके पर पुष्करकरणा ब्राह्मणों में महिलाएँ जो गीत गातीं हैं उन में गांधीजी का भी जिक्र आता है। एक गीत में महिलाएँ गातीं है चरखा कातो क्योंकि गांधी जी ने ऐसा कहा है। पुष्करणा ब्राह्मणों के विवाह गीतों में सामाजिक सुधार की यह भावनाएँ स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों और सामन्ती शासन से लोहा ले रहे सेनानियों पर गांधी जी के प्रभाव के कारण समाहित हुई। इन सेनानियों में एक प्रमुख नेता थे जयनारायण व्यास। वे न केवल राजनेता थे बल्कि गीत संगीत और नृत्य में स्वयं बड़े माहिर थे। उनके लिखे गीतों नें लोगों में आज़ादी की लड़ाई का जोश ही नहीं फूंका बल्कि सामाजिक कुरीतियों पर भी वार किया और समाज को सुधार की तरफ प्रेरित किया। जयनारायण व्यास जो बाद में राजस्थान के मुख्यमंत्री बने ने गांधीजी पर एक गीत लिखा और गाया भी। वह गीत उनकी ही आवाज में मारवाड़ी रिकार्ड कंपनी ने जारी किया जो आज हमारी ऐतिहासिक धरोहर है।

उस गीत को आज फिर याद करना बड़ा ही अनोखा अनुभव है। सीधे सरल शब्दों में मारवाड़ी में व्यास जी ने गाया “साथीड़ा रे, करमोजी रे घरे जायो रे/ मोहन जी नाम धरायो रे / भारत आज़ाद करायो रे / म्हारो बाबो गांधीजी।

आगे वे लोगों को सीख देते हुए गाते हैं “साथीड़ा गांधी दोय बात बताई रे / हिंसा तज राख सच्चाई रे / आ सीख घणी सुखदाई रे / म्हारो बाबो गांधी जी”।

व्यासजी अपने गीत में गांधी के हवाले से केवल अहिंसा और सच्चाई की ही बात नहीं करते बल्कि समाज में व्याप्त कुव्यसनों को छोडने और ईमानदारी पर भी ज़ोर देते हैं और गाते हैं “साथीड़ा रे पर नारी ने माता जाणो रे / पर धन पापोड़ो मानो रे / जन सेवा ने अपनाणो रे / म्हारो बाबो गांधी जी”।

गांधी के रास्ते को निराला बताते हुए शेरे राजस्थान कहलाने वाले जयनारायण व्यास आखिर में कहते हैं “साथीड़ा रे गांधी रो पंथ निरालो रे / सब कौमां हिल-मिल चालो रे/ थे छूआ-छूत मिटावो रे / म्हारों बाबो गांधी जी”।

उस जमाने की 78 आरपीएम रेकार्ड पर गीत के तीन अंतरे ही आते थे इस लिए व्यास जी के गीत का चौथा और अंतिम अंतरा उसमें नहीं है। उस अंतरे में वे उन्होंने कहा : “गांधी रे पथ पर चालो रे / सत न्याय मार्ग अपनालो रे / अड़कर अन्याय मिटलों रे / म्हारों बाबो गांधी जी।

नारी उत्थान और सामाजिक सुधार के लिए जयनारायण व्यास के गीतों अन्य गीतों में भी गांधी की सीख की झलक मिलती है। उनके एक अत्यंत लोकप्रिय गीत “सुनो सुलक्षणी नार” में वे कहते हैं : “सुनो सुलक्षणी नार बात तेरे हितकारी है, विनय हमारी है / ... बचा बचा तू बचा देश को, जो कुछ भी उपकारी है”। आज भी जब स्त्रियाँ यह गीत गाती हैं तो उसमें गांधी के बोल सुनाई पड़ते हैं : “कह निज पति को प्रेम भाव से, जो तो कृष्ण मुरारी है / देशी पहनूंगी यह बात मैंने विचारी है, विनय हमारी है / चरखा ला दो मैं कातूंगी, इसकी छवि कुछ न्यारी है... कते सूत से मुझे बनादो, वस्त्र सभी जो जारी है”

इस प्रकार गीत और संगीत में ढल कर महात्मा गांधी के विचार और उनका जीवन दर्शन आम जन तक पंहुचे और समूचे देश में एक ऐसी चेतना जगाई जिसने ‘हम भारत के लोग’ वास्तव में अपनी सामर्थ्य पहचान सके।

(स्वर सरिता के फरवरी 2011 के अंक में प्रकाशित आलेख)

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