प्रवीणजी भाई साहब : आध्यात्मिक गहराई से लेखन करने वाले पत्रकार


राजेंद्र बोड़ा

राजस्थान के पत्रकार जगत में एक नाम अपनी अलग पहचान रखता है और विशिष्ठ स्थान भी रखता है। यह नाम है प्रवीण चंद छाबड़ा। अपने दोस्तों और सहयोगियों के बीच गहरे अपनत्व से प्रवीण जी भाई साहब के नाम से पुकारे जाने वाले प्रवीण चंद छाबड़ा उन पत्रकारों में से हैं जो देश की आज़ादी और वर्तमान राजस्थान के बनने से पहले से सामाजिक क्षेत्र और पत्रकारिता में सक्रिय हैं। यह हमारा सौभाग्य हैं कि पैसठ सालों की सक्रिय पत्रकारिता और सामाजिक क्षेत्र के कामों के अपने गहरे अनुभव रखने वाले प्रवीण जी भाई साहब का सानिध्य और आशीर्वाद आज उनके 82वें जन्म दिन पर हमें प्राप्त है।

प्रवीण जी भाई साहब ने राजस्थान का निर्माण होते हुए ही नहीं देखा है बल्कि उसके बनने की प्रक्रिया और उस के बाद से अब तक का समूचा राजनैतिक घटनाक्रम पत्रकार के रूप में बहुत नज़दीक से और बहुत गहराई से देखा है। इसीलिए आप नए राजस्थान बनने की राजनीतिक प्रक्रिया को समझने और उसे विश्लेषित करने की दृष्टि पाने में नयी पीढ़ी के पत्रकारों को रोशनी दिखाने में सक्षम हैं।

प्रवीण जी के लेखन में एक अद्भुत आध्यात्मिक गहराई है। इसलिए कई लोगों को लगता है जैसे वे अपनी बात सूत्रों में कह रहे हों। पत्रकारिता के लेखन से भी अधिक महत्वपूर्ण उनका भगवान महावीर और जैनत्व के विभिन्न आयामों पर उनका लेखन है जो उन्हें जैन दर्शन के अद्भुत मनीषी के रूप में उन्हें प्रतिष्ठित करता है। वास्तव में जैन धर्म और आद्यात्मिक विषयों पर अपने लेखन में वे जिस प्रकार और जितना गहरे उतरे हैं वह किसी सांसारिक व्यक्ति के लिए आसान नहीं है। मगर वे अपने लेखन में जितने गहरे और गंभीर होते हैं अपने सामान्य व्यवहार में उतने ही सरल, हर एक से दोस्ती कर लेने वाले होते है। उनके लिए कोई त्याज्य नहीं है। वे सबके साथ रहना चाहते हैं। मगर अपना अलग व्यक्तित्व भी चाहते है। वे उनमें नेतृत्व की अद्भुत क्षमता है और दूसरों के हित में हमेशा तत्पर रहते है। मगर समूह का नेतृत्व करते हुए भी बे सामान्य कार्यकर्ता के रूप में बने रहने का भी बड़ा आग्रह रखते है। यह अंतर्विरोध दूसरे नहीं समझ पाते। इसी अंतर्विरोध के कारण शायद उन्हें जो होना चाहिए वैसा नहीं हो पाते।


26 जुलाई 1930 को एक संभ्रांत जैन परिवार में जन्मे प्रवीण जी भाई साहब की साहित्य और राजनीति में शुरू से ही रुचि रही है। सन 1952 में आपने ‘जय भूमि’ अख़बार में उप संपादक के रूप में पत्रकारिता की यात्रा शुरू की जो अब तक अनवरत जारी है। 1953-54 में आपने साप्ताहिक ‘भारत’ का प्रकाशन और संपादन किया। 1954 में आप कलकत्ता चले गए जहाँ ‘दैनिक विश्वामित्र’ और दैनिक ‘लोकमान्य’ के सम्पादकीय विभागों में काम किया। 1956 में आप पुनः जयपुर आ गए और ‘लोकवाणी’ के उप संपादक और नगर संवाददाता रहे। 1974-75 में आप ‘समाचार भारती’ के जयपुर ब्यूरो प्रमुख बने और बाद में समाचार भारती के चंडीगढ़ और कलकत्ता के ब्यूरो प्रमुख रहे। आप राजस्थान पत्रिका के हरियाणा संस्करण 'हरियाणा पत्रिका' के संपादक भी रहे।

प्रवीण जी भाई साहब की रचनात्मक सामाजिक कार्यों में भी भरपूर रुचि रही है। आपके निश्छल और निष्पक्ष स्वभाव के कारण ही जैन समाज के प्रमुख मुनि देशभूषण जी ने आपको दिगंबर जैन समुदाय के अतिशय क्षेत्र चूलगिरी की व्यवस्थापन समिति का संरक्षक बनाया। ऐसी पुण्यवानी विरलों को ही मिलती है। आप जैन समाज की अन्य कई सामाजिक और शैक्षणिक संस्थाओं से जुड़े हैं। गांधी के दर्शन से सरोबार प्रवीण जी भाई साहब सर्वोदय साहित्य समाज जयपुर के संस्थापक सदस्य रहे है।

श्री छाबड़ा राजस्थान श्रमजीवी पत्रकार संघ के संस्थापक सदस्यों में से है और इसके महामंत्री रह चुके है। आपके नेतृत्व में पत्रकारों ने बड़ी-बड़ी लड़ाइयाँ लड़ी हैं। आप 1964 से 1969 तक भारतीय श्रमजीवी पत्रकार महासंघ की कार्यसमिति के सदस्य रहे तथा वर्तमान में आप महासंघ के सर्वसम्मति से निर्वाचित उपाध्यक्ष हैं। 1963 में विएना में आयोजित पत्रकारों के विश्व सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया तथा रूस सहित कईं भूमध्य सागरीय देशो की यात्रा की और वहाँ की पत्रकारिता का अध्ययन किया।

आप द्वारा भगवान महावीर और जैन धर्म दर्शन पर लिखी पुस्तकें जैन साहित्य में प्रमुख स्थान रखतीं हैं। आपने अहिंसा पर एक वृहद ग्रंथ का संपादन भी किया जो अपने अंदर एक अनूठा उपक्रम हैं।

श्री प्रवीण चंद छाबड़ा अपने जीवन के 81 वर्ष पूरे कर 82 वें वर्ष में प्रवेश कर रहें हैं. इस मंगल अवसर पर राजस्थान के पत्रकारिता जगत के सभी साथियों की तरफ से यही मंगलकामना है कि आप शतायु हों। आपकी चिर बालपन की सौम्य शैली बनी रहे और हम सभी आपका मार्गदर्शन हमेशा पाते रहें।

राजधानी के पत्रकारिता जगत को उन्हीं के सक्रिय प्रयासों से प्रेस क्लब का तोहफा मिला। इस क्लब को बनाने में आपने सबसे अहम् भूमिका निबाही। उन्हीं की सक्रियता ने इस क्लब के सपने को हकीकत में बदला। उन्ही की बदौलत वे सारी प्रशासनिक बाधाएं पार की जा सकी जिससे क्लब के लिए मौजूदा स्थान सरकार से मिल सका। क्लब को अस्तित्व में लाने के लिए भिन्न मतों वालो को एक साथ बिठाना, क्लब का संविधान बनाना, उसे पंजीकृत कराना और उसके पहले खातों का आडिट कराना यह सारा काम आपने अपने प्रयत्नों से किया और पत्रकारों को इस क्लब की सौगात दी जिसके लिए लिए समूचा पत्रकार जगत उनका सदैव ऋणी रहेगा।

आपके जन्म दिन पर आज पत्रकार जगत उनके शतायु होने की मंगलकामना करता है।

(दैनिक समाचार पत्र 'सीमा संदेश' के 25 जुलाई 2011 के अंक में प्रकाशित)

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